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________________ चू *212 ** यह प्रति अन्ति तुम्हारी का क्या पापे पार सयाना है | श्री० दुःखन्दन भी टन का. तुमरा प्रण परम प्रमाणा है । वरदान दया जन कीरत का नि लोक धुजा फहराना है "1 कमली! मासजी, करिये कमला अमलाना है । अपने पिया अलोक मापति, न पार लगाना हूँ || श्रीο दीनानाथ अनाथ हिन्. जन दीन अनाथ पुकारी है। उदयगत कर्मरिक हाल मोह विधा विस्तारी है ॥ पाप और न जीवनकी, ततकाल निया निरवारी है। लोकर प्रभु जान हमारी बारी है ॥ श्री दौलत पद अपनी सुधि भूल आप, आप दुख उपायो, ज्यों शुरू नभचाल विसरि नलिनी लटकायो । अपनी चेतन विरुद्ध शुद्ध दरशोधमय विशुद्ध, तजि जङ-मपरल रूप, पुद्गल अपनायो | अपनी इन्द्रिय सुख-दुख में नित्त, पाग रागरुखमें चित्त, दायक भवविपतिवृन्द, घन्धको बढ़ायो । अपनी चारदाह दाहे, त्यागो न ताह चाहे, समाना न गाहे जिन, निकट जो बतायो । अपनी मानुपसव मुकुल पाय, जिनवरशासन लहाय 'दौल' निजस्वभाव भज अनादि जो न ध्यायौ | अपनीο
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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