SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 396
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३८० पाठ सप्रह सामायिक पाठ भाषा प्रथम प्रतिक्रमण कम काल अनन्त अभ्यो जग में सहिये दुःख भारी। जन्म मरण नित किये पाप को है अधिकारी । कोटि भवान्तर माहि मिलन दुर्लभ सामायिक । धन्य आज मैं भयो जोग मिलियो सुखदायिक ॥ १॥ हे सर्वज्ञ जिनेश ! किये जे पाप जु मैं अब । ते सब मनवचकाय योग की गुप्ति बिना लभ ॥ आप समीप हजर मांहि मैं खड़ो-खड़ो सब । दोष कहूँ सो सुनो करो नठ दुःख देहि जब ॥ २ ॥ क्रोध मान मद लोभ मोह मायावशि प्रानी। दुःख सहित जे किये दया तिनकी नहिं आनी ॥ बिना प्रयोजन एकेन्द्रिय बितिचउपंचेन्द्रिय । आप प्रसादहि मिटै दोष जो लग्यो मोहि जिय ॥३॥ आपस में इकठौर थाप करि जे दुःख दीने । पेलि दिए पगतले दावि करि प्राण हरीने ॥ आप जगतके जीव जिते तिन सबके नायक । अरज करूँ मैं सुनो दोष मेटो दुःखदायक ॥ ४॥ अञ्जन आदिक चोर महा घनघोर पाप मय । तिनके जै अपराध भये ते क्षमा-क्षमा किय ॥ मेरे जे अब दोष भये ते क्षमहु दयानिधि ।
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy