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________________ ३५० जेन पूजा पाठ सह पट्पद 1 11 मद-अवलिप्त-कपोल-मूल अलि-कुल मकारें तिन सुन शब्द प्रचंड क्रोध उद्भुत अति धारै काल- वरन विकराल, कालवत सनमुख आवै । ऐरावत सो प्रवल सकल जन भय उपजावै ॥ देखि गयंद न जय करें तुम पद- महिमा छीन । विपतिरहित संपतिसहित वरतै भक्त अदीन ॥ अति मद-मत्तगयंद कुंभल नखन विदारै मोती रक्त समेत डारि भूतल सिंगारै ॥ बांकी दाढ विशाल वदनमें रसना लोलै । भीम भयानक रूप देखि जन थरहर डोलै ॥ ऐसे मृगपति पगतले जो नर आयो होय | शरण गये तुम चरणकी बाधा करै न सोय || प्रलय - पवनकर उठी आग जो तास पटंतर । चमै फुलिंग शिखा उतंग पर जल निरंतर ॥ जगत समस्त निगल्ल भस्मकर हैगी मानों । वडता दव- अनल जोर चहंदिशा उठानो ॥ सो इक छिनमें उपशमें नाम-नीर तुम लेत । होय सरोवर परिन मैं विकसित कमल समेत ॥ कोलिल - कंठ - समान श्यामतन क्रोध जलंता । रक्त-नयन फुंकार मार विप- कण उगलंता ॥ फणको ऊंचो करै वेग ही सन्मुख धाया । तव जन होय निशंक देख फणिपतिको आया ॥ जो चांपे निज पगतलै व्यापै विष न लगार
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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