________________
इनको नेक विगार, मैं कछु नाहिं कियो। बिन कारन जगवधु ! बहुविधि बैर लियो । अब आयो तुम पास, सुनि कर सुजस तिहारो। नीति निपुन महाराज, कीजे न्याय हमारो । दुष्टन देहु निकार, साधुन को रख लीजै।' विनवै "भूधरदास" हे प्रभु ! ढील न कीजै ।।
मंगलाष्टक (पृन्दावन कृत भाषा) सप सहित श्रीकुन्दकुन्द गुरु, वन्दन हेत गये गिरनार । बाद परयो तह सशय मतिसों, साक्षी बदी अम्विकाकार ॥ 'सत्य' पथ निरमध दिगम्बर, कही सुरी तह प्रकट पुकार । सो गुरुदेव वसो उर मेरे, विधन हरण मद्गल करतार ॥ १ ॥ स्वामी ममन्तभद्र मुनिवरसों, शिवकोटी हट कियो अपार । चन्दन करो शम्भु पिण्डी को, तव गुरु रच्यो स्वयभू भार ।। चन्दन करत पिण्डिका फाटी प्रगट भये जिनचन्द उदार ।। सो०२ ॥ श्री अफलकदेव मुनिवरसों, वाद रच्यो जहं बौद्ध विचार । तारादेवी घट में थापी, पटके ओट करत उच्चार ।। जीत्यो स्यादवादबल मुनिवर, बौद्ध वोध तारामद टार ॥ सो०३॥ श्रीमत विद्यानन्दि जब, श्री देवागम थुति सुनी सुधार । अर्थ हेतु पहूँच्यो जिनमन्दिर, मिल्यो अर्थ तह सुख दातार ।। सब त परम दिगम्पर को घर, परमतको कीनों परिहार | सी०१॥