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करिदीपक जोतं, तमय होतं, ज्योति उदोतं, तुमहिं चढ़े। तुमहोपरकाशक,भरमविनाशक हमघटभासक,ज्ञानबढ़ोती
ॐ ही श्रीजिगमुखोस्वसरस्वतीदेव्य मोदान्धकारविनाशनाय दीप निर्वपामीति स्वाहा ॥३॥ शुभगंध दशोंकर, पावकमै धर, धूप मनोहर, खेवत हैं। सब पाप जलावै, पुण्य कमावै, दास कहावै, सेवत हैं। सी
ॐ हीं श्रीजिनमुखोनपसरस्वतीदेव्य अष्टकर्मपिध्वसनाय धूप निपायीति रवाहा ॥ ७॥ वादाम छुहारी, लोंग सुपारी, श्रीफल भारी, ल्यावत हैं। मनवांछित दाता,मेट असाता,तुम गुन माता, ध्यावत हैं। ती
ही श्रीजिनमुखोद्भवमरस्वतीदेव्यै मोक्षफलप्राप्तये फल निवपामीति स्वाहा ॥ ८॥ नयननसुखकारी, मृदुगुणधारी, उज्ज्वलारी, मोल धरै। शुभगंधलम्हारा, वसन निहारा, तुम तटधारा, ज्ञान करैती छ ही श्रीजिनमुखोद्भवसरम्वतीदेव्यै अनर्घपदप्राप्तये अध्यं निर्वपामीति स्याहा ॥ ९ ॥ जलचंदन अच्छत, फूल चरू चत, दीप धूप अति फल लाई। पूजाकोठालत.जोतुम जानत,सोनर द्यानत.सुख पावै। ती ॐ हीं श्रीजिनमुखोद्भयसरस्वतीदेव्यै अध्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
जवमाला, सोरठा। ओंकार धुनिसार, द्वादशांगवाणी विमल ।
नमों भक्ति उर धार, ज्ञान करै जड़ता हरै॥ पहलो आचारांग बखानो, पद अष्टादश सहस प्रमानो। दूजो सूत्रकृतं अभिलाषं, पद छत्तीस सहस गुरु भापं ॥१॥ तीजो ठाना अगसु जानं, सहस वियालिस पद सरधानं । चौथो समवायांग निहारं, चौसठ सहस लाख इक धारं IRD पञ्चम व्याख्या प्रज्ञपति दरसं, दोय लाख अट्ठाइस सहस ।