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जन पूजा पाठ सप्रह
देवदेवांगना चलियउ जयकारती । सचिय सुरपति सहित करहिं जिन आरती ॥ २ ॥ साजि गजराज हरि लक्ष योजन तनौ । चदन शतबदनप्रतिदन्तवसु सोहनौ । सजल भरिपूर प्रतिदन्त सर सोहती ॥ सचिय० ॥३॥ सरहि सर पञ्च द्वै इक कमलिनी बनी। तामु प्रति कमल पच्चीस शोभा बनी ॥ कमल दल एक सौ आठ विस्तारती । सचिय० ॥४॥ दलहि दल अपछरा नाचही भावसौं । करहिं मंगीत जयकार सुर रागसौ ॥ ताग्र तत थेड थेड करति पगढारती । सचिय० ॥५॥ तासु करि बठि हरि मकल परिवारसों। देहिं परदिछना जिनहि जयकारसो ॥ आनि कर सचिय जिननाथ उद्धारती । सचिय०॥६॥ आनि पाण्डकशिला पूर्वमुख थापि जिन । करहिं अभिषेक जो इन्द्र उत्साहसों॥ अधिक निनदेखि प्रभु कोटि छवि वारती । सचिय० ॥७॥ योजना आठ गम्भीर कलसा वनौ । चारि चौड़ाई मुख एक जोजन तनौ । सहस्र अठोतरसौ कलश शिर ढारती ॥ सचिय० ॥ ८ ॥ छत्र मणि खचित ईशान शिर ढारती। सनतमाहेन्द्र दोऊ चमर गिर ढारती ।। देव-देवी सुपुष्पाञ्जलि डारती ॥ सचिय० ॥ ६ ॥