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जन पूजा पाठ सग्रह
कोई जय जय शब्द कर गम्भीर, जय जय जय हे श्री महावीर । जैनी जन पूजा रचत आन, कोई छन्न दवर के करत दान ।। जिसकी जो मन इच्छा करन्त, मन वाहित फल पावे तुरन्त । जो करै वन्दना एक बार, सुख पुत्र सम्पदा हो अपार ॥ जो तुम चरणो मे रखे प्रोत, ताको जग मे को सके जीत । है शुद्ध यहा का पवन नीर, जहा अति विचित्र सरिता गम्भीर ॥ 'पूरणमल पूना रची सार, होल लेउ सज्जन सुधार । मेरा है शमशावाद ग्राम, नयकाल करूँ प्रभु को प्रणाम ।।
घत्ता ।
श्रीवर्द्धमान तुम गुण निधान, उपना न बनी तुम चरण की। है चाह यही नित बनी रहै, अभिलाण तुम्हारे दर्शन की। ___ ॐ ही श्री दिनगाव महावीर जिनेन्द्राय जयमाला निर्वपामोति स्वाहा । दोहा—अष्ट-कर्म के दहन को पूजा श्चो विशाल ।
घढे सुने जो भाव से छूटे जग जाल ॥ सम्वत् जिन चौबीस सौ है वासठ की साल । एकादश कार्तिक बदी पूजा रची सम्हाल ॥
इत्याशीर्वाद ।
सदाचार - मानव जीवन राज्य है, मन उसका राजा है, इन्द्रियाँ उसकी मेना हैं, कषाय शत्रु है। यदि मन विवेकशील है तो इन्द्रियाँ मदा सचेत रह कर कषाय शत्रुओं को पराजित करती रहेंगी।
---'वर्णी वाणी' से