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________________ चा110008 - श्री बाहुबली स्वामी की पूजा दोहा-कर्म अरिगण जीति के, दरशायो शिव पन्थ । प्रथम सिद्ध पद जिन लयो, भोगभूमि के अन्त ।। समर दृष्टि जल जीत तहि, मल्ल युद्ध जय पाय । वीर अग्रणी बाहुबली, वन्दौ मन वच काय ॥ ' ॐही श्रीमद् वाहदती। पत्रावतरावतर संवौषट् भाशानन । ही श्रीमद वाहवती। अत्र तिट तिट ठ ठ स्थापनं । ही प्रीमद् बार वली। अब मम सत्रिहितो भव भव वषट् सनिधापनं । अथ अष्टकं चाल जोगीरासा। जन्म जरा मरणादि तृषा कर, जगत जीव दुःख पावै। तिहि दुःख दूर करन जिनपद को पूजन जल ले आवै । परम पूज्य वीराधिवीर जिन बाहुबली बलधारी।' तिनके चरण-कमल को नित प्रति धोक त्रिकाल हमारी॥ हो श्री वर्तमानगवसपिगी समये प्रथम मुक्ति स्थान प्राप्ताय कर्मारि विजयी वोराधीवीर वीराग्री श्री बावली परम थोगोन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जल ॥२॥ यह संसार मरुस्थल अटवी तृष्णा दाह भरी है। तिहि दुःख वारन चन्दन लेकै जिन पद पूज करी है । परम० ॐ ही प्रे स सारतापविनाशनाय चन्दन निर्वपामोति स्वाहा ॥ २ ॥ स्वच्छ शालि शुचि नीरज रजसम गन्ध अखण्ड प्रचारी। अक्षय पद के पावन कारण पूजे भवि जगतारी ॥ परम० ॐ ही श्री अक्षयपदप्राप्तये अक्षत निर्वपामीति स्वाहा ॥ ३ ॥
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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