________________
जैन पूजा पाठ सम
नावहिं सु माघ ।
होते
निहाल ||
प्रति प्रतिमा इन्द्र सडे दुओर, कर वंवर घरें आजू बाजू खडी देवी द्वार, पद्मावती कर द्वादश भुवि हथियार धार, मानहुँ निन्दक नहिं आवें द्वार || ताके दक्षिण चली गुफा आय, सवबसरा हे ताको कहाय । तामें चौपीती वनी मार, अरु प्रय प्रतिमा सब योग धार ॥ सपमें हरि चमर सु घरहिं हाथ, नित आय भव्य चाके ऊपर मन्दिर विशाल, देखत भविजन ता दक्षिण हटी गुफा आय, तिनमें ग्यारह प्रतिमा 'पुनि पर्वत के ऊपर मु जाय, मन्दिर दीरप मन को चामे प्रतिमा भगवान जान, खड्गासन योग धरें ले अष्ट द्रव्य तमु पूज्य कीन, मन वच वन करि मम घोक दीन ॥ यो जन्म मफल अपनो सु भाय, दर्शन अनूप देसो जिनाय । जब अष्ट-कर्म होंगे जु चूर, जातें मुख पाहें पूग्य उत्तर द्वय निज सु धाम, प्रतिमा खड्गासन अति दर्शन करके मन शुद्ध होय, शुभ चन्ध होय निश्चय जु जोय ॥
सुहाय ।
लुभाय ॥ महान ।
पूर-पूर || महान ।
१६३
प्रभु भक्ति जोर || चक्रेश्वरी सार ।
पुनि एक गुफा में विम्पसार, ताको पूजन कर फिर उतार । पुनि और गुफा साली अनेक, ते हैं मुनिजन के ध्यान हेत ॥ पुनि चल कर उदयगिरि मुजाय, मारी-भारी जु गुफा लखाय ।
क गुफा माहिं जिनराय जान, पद्मासन धर प्रभु करत ध्यान ॥ जो पूजत है मन वचन काय, सो भव भव के पातक नशाय । तिनमें इक हाथी गुफ़ा जान, प्राचीन लेस शोभे महान || महाराज खारवेल नाम जास, जिनने जिनमत का किया प्रकाश । बनवाई गुफा मन्दिर अनेक, अरु करी प्रतिष्ठा भी अनेक ||