________________
१३४
जैन पूजा पाठ मह
छिनमाहि मोह विध्वस हौवं आरती कर चावसों ॥ स०॥
ही मोकाट निवर निजात परकन सनी - तीर्यदि असंख्यात मुनि नुक्तिमान, रविकान्ट टो० ॥ ६॥ शुभ अगर अम्बरवाल सुन्दर धूप प्रभु टिग खेवही। ए दुष्टकर्म प्रचण्ड तिनको होय तत छिन छेव्ही ॥ सो धूप दस विधि जरत कारण लीजिये सुध भावसो | स॥
ॐ नन्द रहित रवत तो दोन तोगदि सव्यात मुनि मुक्ति पार, भादव० ॥ ७॥ बादाम श्रीफल लोग पिस्ता लेय शुद्ध सम्हालही। सैकार दाख ग्रनार केला तुरत टूटे डालही ॥ भवि लेय उत्तन हेत शिव के छूट विधि के दावसों ॥ सoll
ॐ ही प्रीट केन्द्रित रक्त तो टीम तीरादि असख्यात मुनि मुक्ति पधार, मामलाइट ल८॥
चापय चाल।
जन्म मृत्यु जल हरे, गन्ध आताप निवारे । तन्दुल पदके अक्षय मदन कू सुमन विदारै ।। क्षुधा हरण नैवेद्य दीप ते ध्वान्त नसावै । धूप दहै वसु कम मोक्ष सुख फल दरसावें ॥ ए वसु द्रव्य मिलाएकै अर्घ रामचन्द्र कीजिये । करपूजा गिरिशिखरकी नरमव का फल लीजिये।
ॐ हो श्री सम्मैट शिवर सिद्धक्षेत्र परवत संतो वीस तीर्थक्रादि असख्यात मुनि मुक्ति पधार, अनर्यपदप्राप्तये अर्ध्य० ॥६॥