________________
११२
जैन पूजा पाठ समह
श्रीशान्तिनाथ जिन-पूजा
मत्तगयद छद । (यमकालकार )
या भव-कानन में चतुरानन, पाप-पनानन घरि हमेरी । आम जान न मान न ठान न, वान न होन दई सठ मेरी || तामद-भानन आपहि हो यह, छान न आन न आन्न टेरी । आन गही शरनागतको, अब श्रीपतजी पत राखहु मेरी ॥ १ ॥६ ॐ ह्रीं श्रीशान्तिनाय जिनेन्द्राय । अत्र अवतर अवतर सवौषट् ।
ॐ ह्रीं श्री शान्तिनाथ जिनेन्द्राय । अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ ।
ॐ ह्रीं श्री शान्तिनाथ जिनेन्द्राय ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । छद त्रिभगी। अनुप्रयासक । (मात्रा ३२ जगणवर्जित ) |
-
हिमगिरि - गत- गंगा धार अभंगा, प्रासुक संगा भरि भृङ्गा । जर मरन मृतंगा नाशि अधंगा, पूजि पदंगा मृदुहिगा || श्री शान्ति जिनेशं, नुत शक्रेशं वृपचक्रेशं, चक्रेशं । हनि अरि - चक्रेशं, हे गुनधेशं, दयामृतेशं, मक्रेशं ॥ १ ॥ ॐ ह्रीं श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जल निर्वपामीति स्वाहा । वर बावन- चंदन, कदली-नंदन, घन- आनदन, सहित घसों । भव-ताप-निकंदन, ऐरा-नंदन, वंदि अमंदन, चरन बसों ॥ श्री० ॐ ह्री श्री शान्तिनाथ जिनेन्द्राय भवतापविनाशनाय चन्दन निर्वपामीति स्वाहा । हिमकर करि लज्जत, मलय सुसज्जत, अच्छत जज्जत, भरिथारी । दुख-दारिद - गज्जत, सद-पद- सज्जत, भव-भय-भज्जत, अतिभारी ॥ श्री० ॐ ह्रीं श्रीशान्तिनाथ जिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।
-