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________________ ये एक हुन्छ १५ परविन्द सुनकर ग्राम आयो, कृपा कीज्यो नाथजी ॥ ३ ॥ तुम चन्द्रसदन में पलन, चन्द्रपुरि परमेश्वरी । महासेननन्दन जगन्दन, चन्द्रनाथ जिनेश्वरो ॥ ४ ॥ तुम शान्ति पांघरून्याप पूजा, शुरुगन वन काय तू । , दुर्मिस पांगे पानायन, रिपन पलाय ज् ॥ ५ ॥ तुम वनवन किया भव्य-कान विकाशनी । श्रीनगिनाम पवित्र दिनकर पाप-तिमिर विनाशनो ॥ ६ ॥ जिन गया काम पण करी | नाप शिव-गणी वरी ॥ ७॥ निर्भद कियो । ये वर्ष, नन्दनगतन्न संघ मंगल कियां ॥ ८ ॥ दिनानक दीक्षा, फस्ट मान विहार । क. मैं नमीं शिर धारक ॥ ६ ॥ गा, दीन जानि दया करो | festaree ander महावीर विनेगे ॥ १० ॥ नवीन गुरनर मोह, चीनी अप धारिये । करोड की प्रन आवागमन निवारिये ॥ ११ ॥ यो भव्यामि मेरे में गदा सेवक हो । · करजी कनगांगू, गोक्षफल जापन को ॥ १२ ॥ वो एक माही एक राज, एक मांहि अनकनी । ट्रक अनेक की नहि संख्या न मिद निरानी ॥ १३ ॥
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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