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________________ न पूजा पाठ सह ९३ मन्दामान्ता। मग्धरा छन् । हो सारी प्रजाको सुख बलयुत हो धर्मधारी नरेशा। हो। वर्षा समैप तिल भर न रहै व्याधियों का अन्देशा॥ हो। चौरी न जारी सुसमय वरतै हो न दुष्काल भारी । सारे ही देश धार जिनवर-वृपको जो सदा सौख्यकारी ।। • दोहा-घातिकर्म जिन नाश करि, पायो केवलराज । शांति करो सब जगतमें, वृषभादिक जिनराज ॥ शास्त्रों का हो पठन सुखदा लाभ सत्संगती का। __ सवृत्तों का सुजस कहके, दोप ढांकं सभी का ॥ बोलूं प्यारे वचन हितके, आप का रूप ध्याऊँ। सोलों सेॐ चरण जिनके मोक्ष जोलौं न पाऊँ । तव पद मेरे हिय में, मम हिय तेरे पुनीत चरणों में। तवलों लीन रहीं प्रभु.जबलों पाया न मुक्ति पद मैने । अक्षर पद मात्रासे दूपित जो कुछ कहा गया मुझसे। क्षमा करो प्रभुसोसव,करुणाकरि पुनिछड़ाहुभव दुखसे।। हे जगवन्धु जिनेश्वर ! पाऊँ,तव चरण शरण लिहारी। मरण समाधि सुदुर्लभ, कर्मोंका क्षय सुवोध सुखकारी ॥ पुप्पाजलि क्षेपण । आया।
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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