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________________ मैना पाठ थापक विद्यावंत निहार, बरमी रतन राशि तत्काल ८५ भगति - मावसी दियो अहार । बन्द नमिप्रभु दीन दयाल ॥२१॥ राग-द्वेष दुबन्धन तोर | सब जीवनी बन्दी र रजमति तजि शिव-नियमों मिले, नेमिनाथ चंदौ मुग निले ॥२२॥ दैत्य कियो उपसर्ग अपार, ध्यान देखि आयो फनिधार । गयो कमट ट कर श्याम, नमी मेरुमम पारसस्नाम ||२३|| भवसागर जी अपार, धरम-पोतमे धरे निहार । सूक्त का दया विचार, वर्द्धमान चन्द बहुवार ||२४|| दोहा -- चौबीसों पद कमल जुग, चंदों मन वच काय । 'धानत' पढ़े सुन सदा, सो प्रभु क्यों न सहाय ॥ मोक्षमार्ग बनेगार पोर मोक्ष लाने हो में येग्रो, या राज्ञान तुम्हें चा देगा | નર - १६ मामा मन्द में नहीं, ममजिद में नदी, गिरजाघर में नहीं, -पाद और तोर्पराज में नदी -इसका उदय तो आत्मा में दे । -'पणी पाणी' से
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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