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________________ [ ४५ ] मगन सुविधा एती ॥ कारज० ॥४॥ ( ८४ ) चेतन खैलै होरी ॥ टेक ॥। सत्ता भूमि हिमा वसन्तमें, समता प्रान प्रिया संग गोरी | चेतन० ॥ १ ॥ मनको माट प्रेमको पानी, तामें करुना केसर घोरी | ज्ञान ध्यान पिचकारी भरि भरि आपमें छोर होरा होरी | चेतन० ||२|| गुरुके वचन मृदंग बजत हैं, नय दोनों डफ ताल टकोरी । संजम अतर विमल व्रत चोवा, भाब गुलाल भरै भर भोरी ॥ चेतन० ॥३॥ धरम मिठाई तप बहु मेवा 'समरस आनन्द अमल कटोरी । द्यानत सुमति कहै सखियनसों, चिरजीवो यह जुग जुग जोरी ॥ चेतन० ||४|| (८५) भोर भयो भज श्रीजिनराज सफल होंहिं तेरे सब काज ॥ टेक ॥ धन सम्पत मनवांछित भोग, सव विधि आन बर्नै संयोग ॥ भोर० ॥ १॥ कल्प वृच्छ ताके घर रहै, कामधेनु नित सेवा वहै । पारस चिन्तामनि समुदाय, हितसों आय मिल सुखदाय || भोर० ||२|| दुर्लभतै सुलभ्य ह्वै जाय "
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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