________________
[ ४२ ] भारो । प्रत्याहार धारना कीजै, ध्यान समाधि महारस पीजै । ऐसो० ॥२॥ सो तप तपो बहुरि नहिं तपना, सो जप जपो बहुरि नहिं जपना । सो ब्रत धरो बहुरि नहिं धरना, ऐसे मरों बहुरि नहिं मरना ॥ ऐसो० ॥३॥ पंच परावर्तन लखि लीजै, पांचों इन्द्रकी न पतीजै । द्यानत पांचों लच्छि लहीजै, पंच परम गुरु शरन गहीजै ॥४॥
(७६) राग विलाबल । __ कहिवेको मन सूरमा, करवेकों काचा ॥टेक॥ विषय छुड़ावै और पै, आपन अति माचा ॥ क. हिबे० ॥ १॥ मिश्री मिश्रीके कहैं, मुंह होय न मीठा । नीम कहैं मुख कटु हुआ, कहुं सुना न दीठा ॥ कहिवे० ॥२॥ कहनेवाले बहुत हैं, करने कों कोई । कथनी लोक रिझावनी, करनी हित होई ॥ कहिवे० ॥३॥ कोड़ि जनम कथनी कथै, करनी बिनु दुखिया। कथनी विनु करनी करै, द्यानत सो सुखिया ॥ कहिवे० ॥४॥
(८०) राग विलावल । श्री जिननाम अधार, सार भजि ॥टेक॥ अगम अतट संसार उदधितै, कौन उतारै पार ॥