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[ ३० । तू अपनो विगारे, जाय दुर्गति परै ॥ रे जिय० ॥२॥ होय संगति गुन सबनिकों, सरव जग उच्चरै तुम भले कर भले सवको, बुरे लखि मति जरै ॥रे जिय० ॥३॥ वैद्य परविष हर सकत नहिं, आप भाखिको मरै। बहु कपाय निगोद-वामा, छिमा द्यानत तरै ॥ रे जिय० ॥४॥
(५७) फूली बसन्त जहं आदीसुर शिवपुर गये । टेक ॥ भारतभूप बहत्तर जिनगृह, कनकमयी सब निरमये ॥ फूली० ॥१॥ तीन चौवीस रतनमय प्रतिमा, अंग रंग जे जे भये । सिद्ध समान सीस सम सबके, अद्भुत शोभा परिनये ।। फूली०॥२ बालि आदि आहूठ जोड़ सुनि, सबनि मुकति सुख अनुभये । तीन अठाई फागनि (?) खग मिल गावै गीत नये नये ॥ फूली० ॥६॥ वस्तु जोजन वस्तु पैड़ी (?) गंगा फिरी बहुत खुरआलये। द्यानत सो कैलास नमौं हौं, गुन कापै जा वरनथे। फूली० ॥४॥
(५८) तुम ज्ञानविभव फूली वसन्त, यह मन मधु