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हित करि आरत तजि बुधजन, जन्म जन्ममें जरना क्या रे ॥ काल० ॥ ४॥
६ भजन । म्हे तो छापर वारी, वारी वीतरागीजी, शांत छबी थांकी आनंदकारी जी ॥ म्हे० ॥ टेक ॥ इंद्र नरिंद्र फरिंद मिलि सेवत, मुनि सेवत रिधिधारी जी ॥ म्हे० ॥ १॥ लखि अविकारी परउपकारी, लोकालोकनिहारी जी ॥म्हे ०॥२॥ सब त्यागी जो कृपातिहारी, बुधजन ले बलिहारी जी ॥म्हे०॥३॥
७ भजन। या नित चितवो उठिकै भोर, मैं हूं कौन कहांत आयो, कौन हमारी ठौर ॥ या नित०॥टेक॥ दीसत कौन कौन यह चितवत, कौन करत है शोर । ईश्वर कौन कौन है सेवक, कौन करे झकझोर ॥ या नित०॥ १॥ उपजत कौन मरैको भाई, कौन डरे लखि घोर । गया नाहीं आवत कछु
नाहीं, परिपूरन सब ओर ॥ या नित०॥ २ ॥ और _ और मैं और रूप हौं,परनतिकरि लइ और । स्वांग धरै डोलौ याहीतै, तेरी बुधजन भोर ॥ या०॥
८ भजन । श्रीजिनपूजनको हम आये, पूजत ही दुख