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[ १८ ] हेत । ममता बुद्धि निवारिये हो टारिये भरम निकेत ॥ घटमें० ॥१॥ प्रथमहिं अशुचि निहारिये हो सात धातुमय देह । काल अनन्त सहे दुख जानें, ताको तजो अब नेह ॥ घटमें० ॥२॥ ज्ञानावरनादिक जमरूपी, जिनतै भिन्न निहार । रागादिक परनति लख न्यारी, न्यारो सुबुध बिचार ॥ घटमें
॥ तहां शुद्ध आतन निर विकलप, व करि तिसको ध्यान । अलप कालमें घाति नसत हैं, उपजत केवल ज्ञान ॥ घटमें० ॥४॥ चार अघाति नाशि शिव पहुंचे, विलसत सुख जु अनन्त । सम्यक दरशनकी यह महिमा, चानत लह भव अंत ॥ घटमें०॥शा
समझत क्यों नहिं वानी, अज्ञानी जन ॥टेक॥ स्यादबाद अङ्कित सुखदाय, भागी केवलज्ञानी ॥ ॥ समझत० ॥१॥ जास लरखें निरमल पद पावै, कुमति कुगतिकी हानी । उदय भया जिहमें परगासी, तिहि जानी सरधानी ॥ समझत० ॥२॥ जामें देव धरम गुरु वरने, तीनौं सुकतिनिसानी । निश्चय देव धरम गुरु आतम, जानत विरला