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( ४८ ) लोचनमें, विसरत नाहिं घरी। भूधर कह यह टेव रहो थिर, जनम जनम हमरी ।। नैन० ॥३॥
६ राग-मलार। वे मुनिवर कब मिलिहैं उपगारी॥टेक ॥ सा. धु दिगम्बर नगन निरम्बर, संबर भूषणधारी ।। वे मुनि० ॥२॥ कंचन काच बरावर जिनक, ज्यौं रिपु त्यौ हितकारी। महल मम्मान भरन अरु जीवन, सम गरिमा अरु गारी ॥ वे मुनि० ॥२॥ सम्यज्ञान प्रधान पवन बल,तप पावक परजारी। सेवत जीव सुवर्ण सदा जे, काय-कारिमा टारी ॥ वे मुनि०॥३॥ जोरि जुगल कर भूधर विनवै, तिन पद ढोक हमारी । भाग उदय दरसन जब पाऊं, ता दिनकी बलिहारी ॥ मुनि० ॥४॥
१०० राग-बिलावल। प्सब विधि करन उतावला. सुमरनकौं सीरा॥ टेक ॥ सुख चाहै संसारमैं, यों होय न नीरा॥ सब विधि० ॥१॥ जैसे कर्म कमाव है, सो ही फल वोरा ! आम न लागै आकके, नग होय न हीरा ॥ सब - विधि ॥२॥ जैसा विषयनिकों चहै न रहै छिन धीरा। त्यों भूधर प्रभुकों जपै पहुंचै भव तीरा ॥सब०॥३॥
समाप्त न