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________________ ( ८५ ) ७० (भजन उपदेशी ) नहीं कुछ हम किसीके हैं, हमारा को न प्यारा है ।।टेक।। सुता सुत बहन परवारा, पिता माता हितू दारा । ये तन सम्बन्ध कुटुम्ब न्यारा हमारा क्या हमारा है ॥ नहीं कुछ० ॥१॥ सराये सम जगत पाता, कोई आता कोई जाता । मुसाफर से कहा नाता, कोई दमका गुजारा है ॥ नहीं कुछ० ।। २ ॥ विषय सुख पुन्य की माया, घोर दुख पाप से पाया । ये सुख दुख कर्म की छाया, अलग चेतन विचारा है ॥ नहीं कुछ० ॥३॥ मिटा भ्रम नंद उद्योती, तेरे घटमें परम जोती । सकल जग रीत लखि थोथी, किया सवले किनारा है । नहीं कुछ।॥४॥ (वीनती पार्शनाथ) पारस पुकार मेरी, सुनिये करी क्या देरी ॥ टेक ।। भ्रमियो मैं लक्षचौरासी, धर धरके देहनाशी । जन्मा फिर मरन ताई, अति घोर दुख लहाई ॥ पारस पुकार०॥१॥ पाया में कष्ट भारी, वरनों मैं तुम अगारी । तुम हो जगत के स्वामी, वाधा हरन को नामी ॥ पारस पुकार०॥२॥
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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