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________________ वृहदूविमल पुराण । यह अन्य अप्राप्य था इसको संस्कृतमे प्राप्त कर उसको सरल भाषाटोका श्रीमान माननीय प० गजाधरलालजी, न्यायतीथसे लिखाकर पाया गया है। द्वितीय वृत्तिका मूल्य ६) मात्र । शांतिनाथ पुराण । यह अन्य भी सस्कृतमें था, इससे हिन्दी भाषा वाले स्वाध्यायसे चितवं ही रह जाते थे, अतएव इसका सरल भाषा, प, लालारामजी शास्त्री द्वारा अनुवाद कराया गया है। शास्त्राकार छाया है। मूल्य ६ रुपया । आदिपुराण। इस बड़े भारी प्रन्थको सार रूपमें सरल भाषा बचनिकामें पं० बुद्धि- । लाल श्रावकसे लिखवाया गया है। सिर्फ शृद्धार भाग छोड़कर बाकी प्रत्येक विषयको ग्रन्थमें लानेका प्रयत्न किया है, यही कारण है कि थोड़े ही समयमें मन्थको द्वितियावृत्ति करानी पड़ी । शास्त्राकार, मूल्य ६ रुपया। मल्लिनाथ पुराण ।. प० गजाधरलालजी शास्त्रीने संस्कृतसे हिन्दीमें इसको भाषाटोका की। है। गन्धको हिन्दी जाननेवालोंके लिये ही छराया है। जैन समाजने इसको. थोड़े ही समयमें मगाकर खतम कर दिया है। यह द्वितीय वृत्ति है ।। न्योछावर ४) रुपया मात्र। पुत्याश्रव कथा कोष । इम ग्रन्थका मिलना १५ वर्षसे रन्द हो गया था उसीको सचित्र ४० चित्र देकर छपाया है, इसकी कथायें कितनी सुन्दर गौर शिक्षाप्रद हैं, यह हमारे धर्मात्मा पाठक स्वाध्याय करके ही अनुभव प्राप्त कर , सके है। भाषा वर्तमान दगको सरल और सुहावरेदार है। फिर भी इस ४०० अपने ग्रन्थको न्योछावर २॥) मात्र है। चित्र देकर जा मिलना १५ वर्ष कथा कोष।
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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