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________________ गई जब मैं अपने बचो और पोतों की जारुओं के विछुओं की झंकार बुनता हूं नर हाय मलता हूं और सिर को धुनता हूं। न दिन को चैन है और न रानीपाराम है। सच पूछो नो विला जोरू के यह मिदगी हराम है। याइयो । निंदनी के दिन तो बुरी बली तरह से गुजर ही जायगे और मरने को वह क्या मर्ग हम भी एक न एक दिन मर ही जायंगे लेकिन सब से ज्यादा फिकर नो यह है कि बाइ मरनेके डिग झोन नाड़गी. करवा कौन फोड़ेगी बिछुड़े कौन उतरेगी, वनड़ो कोर फाड़ेगी। हाय। जब इस बान का गल जाता है तो बानी पर को लांग सा चला जाता है । पाइयो : मत सुनो इन नौजवानोंकी, मत सुनो इन आलिम और विद्वानों की ! यह तो अपने मतलब की कहते हैं, खुद मजे में रहते है। इनको हमलोगों की क्या खबर है। नुरडा हिश्न में जाय या दोजख में। इनको तो अपने दात मांडे से काम है। वर्स वस, आओ! भाइयों शादी कगा। कोई सात पाठ कई की नन्ही सी दुल्हन व्याह कर लावे। लेकिन ख्याल रखना अगर कोई बड़ो दुल्हन आवेगी नो वह कमवल्ल हनो ही नाच नोच कर खाजावेगी। इस लिये खूब लोच समझ कर काम करना चाहिये मेरी तो यह राय है किविता जोह के रंडवेपन की डालन मे हरगिज न मरना
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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