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________________ ( ६५ ) गरचे रंडीके यार, गर्भ तेरा रहजाय, कन्या जन्मे जो श्राय, जग से मैथुन कराय, बेशुमार जमाई बनाना हुआ | रंडी बाज़ी में० ॥ ३ ॥ यदि गर्मी होजाय, फिरो टहनी हिलाय, कहीं जात्रो चलाय, देख तुम को विनाय, कहैं उठना वो, खूब याराना हुआ । रंडी बाज़ी में० ॥ ४ ॥ जबलों पैसा है पास, रंडी रहती हैं दास, नही पैसा रहा पास, देवे बाहर निकास, घरसे मुवे निकल क्या दिवाना हुवा | रंडी बाजी में० ॥ ५ ॥ जाओ फिर कर जो यार, मारे जूते हजार, दौड़ लावे पुकार, पुरक बांधै सरकार, पुलिस आगई इज़हार लिखाना हुआ । रडी बाजी में गर्क जमाना हुआ || ६ || फौरन थाने में थान किया तेरा चालान, हुक्म डिप्टी ने तान, दिया ऐसा लो जान, छह की सजा, दस जुर्माना हुआ | रंडी बाजी में० ॥ ७ ॥ कहता जैनी ललकार, कर इससे न प्यार, जाओ नरकों मंझार, नहीं हरगिज जिनहार, प्रीति इससे न कर, क्यों दिवाना हुआ | रंडीबाजी मे गर्क ज़माना हुआ || ८ ॥ ६२ ( रंडी निषेध ) हया और शर्म तज रंडी सरे महफिल नचाई है, न समझो
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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