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________________ ( ६३ ) (विरोधी) रातों जगने से महफिल में होते हो बीमार । वहुत जगह बुनियाद इसी पर चलते खूब पैजार ।। मत रंडी नचा मत रंडी नचो० ॥ ७ ॥ (नचाने०) महफिलमें रंडीकी शोहरत सुनकर सव आजावें रौनक बढे विवाह को भारी रुपया सभी चढ़ावें । ज़रा रंडी नचा जरा रंडी नचा० ॥८॥ (विरोधी) रंडी का सन नाम सभासे धार्मिकजन उठ जावें नंगों के बैठे रहने से मना नहीं कुछ आवे ॥ मत रंडी नचा मत रंडी नचा० ।।६।। ( नचाने०) बिन इसके रौनक नहीं आवै सनी लगे वरात दिन तो जैसे तैसे वितावें कटै न खाली रात ।। जरा रंडी नचा जरा रंडी नचा०॥ १० ॥ (विरोधी) धर्मोपदेशक वलवा करके, कीजे धर्म प्रचार । रंडी भड़वे तुम्हें बनावे करदें खाने खराव ॥ मत रंडी नचा मत रंडी नचा० ॥११॥ (नचाने०) नित्य नहीं हम नाच करावें कभी २ करवावें । नेग टेहले को साधे है, नहीं खता हम पावें ।। जरा रंडी नचा जरा रंडी नचा० ॥ १२ ॥ (वरोधी) एक दफे का लगा ये चस्का, कर देता है ख्वार । धन दौलत सब खोकर प्यारे, होजायगा बेज़ार ।। मत रंडी नचा मत रंडी नचा० ॥ १३ ॥
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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