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________________ जुबारी–सुनी नसीहत तेरी भाई, दिलमें किया खयाल । इस पापी चण्डाल जुए ने, कर दीना कंगाल । नहीं खेलूं जुआ, नहिं खेलूं जुआ ॥१०॥ विरोधी-विद्यानन्द भव भव तिरना प्यारे, सवसे नियम __ कराओ । एस. आर. कहै लानत भेजो, खाक इस के सर डालो । मत खेलो० ॥११॥ जारी-जुश्रा बड़ा जंजाल है भाइयो इसका मत लो नाम । पैसे मारो फेंक जमी से दरसे करो प्रणाम । नहीं खेलें जुआ, नहीं खेलूं जुआ, आज से मैंने नियम लिया ॥१२॥ ५१ (सट्टे का ड्रामा) सट्टेबाज़-ज़रा सट्टा लगा, जरा सट्टा लगा, घर बैठे तू मौज उड़ा । विरोधी-मत सट्टा लगा, मत सट्टा लगा, कर देगा यह तुझको तबाह || मत सट्टी० ॥ सट्टेवाज की कहूं कहानी, सुनलो मेरे भाई । धन तो सारा दिया लुटा फिर होश ज़रा नही आई, मत सट्टा लगा, मत सटेंटा लगा० ॥१॥
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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