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________________ (७) भजन नं० ६ प्रार्थना। भमवन समय हो ऐसा-जब पान तन से निकले । तुम से ही लौ लगी हो, तुम नाम मन से निकले ॥टेक ॥ सिद्धगिर के शिखर पर, तेरी ही, टोंक भीतर । तुझ ध्यान हूं रहा धर, भक्ति दहन से निकले-भगवन०॥१॥ गुरुजी दरश दिखाते, उपदेश भी सुनाते, आराधना कराते मीठे वचन से निकले भगवन० ॥२॥ भूमीय हो संथारा, लगता हो ध्यान धारा, त्यागं सभीयाहारा, तुझनामधुनसे निकले भगवन० ॥३॥ सम्मुख छवी तेरी हो-उसपर निगाह मेरी हो । संसार सेवरी हो. श्रात्मा चमन से निकले । भगवन० ॥४॥ भक्ती के तेरे नारे, चहुंओर जां उचारे । जैनी कहे पुकारे, प्राणी मगन से निकले, भगवन ॥५॥ भजन नं०७(गजल शान्तनाथ स्तुति) शान्त प्रभू शान्तिता का स्वाद हम को दीजिये। नष्ट करके कर्म सारे, पार खेवा कीजिये ॥ टेक ॥ ___ भक्ती से ती शक्ती हमारी, हो प्रगट एरमात्मा । सुधरे भारत की दशा, होवे सभी धस्मात्मा ।। शांति० ॥१॥
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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