________________
( २६ )
चित खग चंचलचारी वे || श्री० ||२|| तिनके चरनसरोरुह ध्यावै, भागचन्द अघदारी वे ॥ ३ ॥
५३ राग खमाच ।
सारौ दिन निरफल खोयवौ करै छै । नर भव लहिकर प्रानी विनज्ञान, सारौ दिन नि० ॥ टेक ॥ परसंपति लखि निज चितमाहीं, विरथा सूरख रोयव करै छ ॥ सारौ ॥१॥ कामानलौं जरत सदा ही, सुन्दर कोयब करें छै ॥ सारौ ॥२॥ जिनमत तीर्थस्नान नठाने, जलसौं पुद्गल धोयबा करै छ ॥ सारौ ||३|| भागचन्द इमि धर्म विना शठ मोहनींद में सोयी करै छै ॥ सारौ ||४||
५४ राग सोरठ ।
स्वामी मोहि आपनो जानि तारौ, या विनती अब चित धारौ ॥ टेक ॥ जगत उजागर करुणा सागर, नागर नाम तिहारौ || स्वामी मोहि० ॥ १ ॥ भव अटवी में भटकत भटकत, अब मैं अति ही हारौ ॥ स्वामी मोहि ||२|| भागचन्द स्वच्छन्द ज्ञानमय सुख अनंत विस्तारौ ॥ स्वामी मोहि० ||३||
५५ राग - सोरठ ।
आवै न भोगनमें तोहि गिलान ॥ टेक ॥ ती