SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 294
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ५६ ] १२० - ठुमरी देश और माह की । । प्रभु धन्य धन्य, जग मन्य मन्य, तुम हो प्रछन्न, हम लिये जन्य तुम सम न अन्य, जग जन हितकारी ॥टेक॥ सुनिये जिनेन्द्र, मैं हूं सुरसुरेन्द्र, ये हैं मस उपेन्द्र, ये हैं सुर गजेन्द्र, चलिये जिनेन्द्र, कीजे न्हवन त्यागे ॥१॥ हे जगत भान, किरपानिधान, मोहि लो पिछान, सौधर्म जान सुरपति ईशान, ये हैं मंग हमारी || २ || सन्मति कुमार, माहेन्द्र सार, अरु सुर अपार, चारों प्रकार, मैं तो ले कैलार, तोरी सेवा उर धारी ॥ ३ ॥ हे दीनबंधु, हे दयासिंधु, मैं महरचंद, तोहि बंदिबंदि, लूंगा उछंग - कीजै गज असवारी ॥ ४ ॥ नहीं करी देर, गये गरि सुमेर, पांडुक बनेर, पांडुक सिलेर, लाय जाय घे - ताकी पूजा विस्तारी ॥ ५ ॥ भरि क्षीर वारि, कलशा हज़ार, प्रभु सीस ढार, जिन गुण उचार, करि जै जैकार- अरु कोनी विघिसारी ॥६॥ कहि मिष्टवैन, हरिमात सैन, करि सुजस जैन, लगे गोददैन, भई मुख्य नैन-मानो फूली फुलवारी ॥ ७ ॥ ॥ १२१ - राग देश विहाग परज के जिले की ठुमरी । भजन से रख ध्यान प्राणी, भजन से रख ध्यान ॥ टेक ॥ भजन से इंद्रादि पद हों, चालन बैठ बिमान । भजन सैं होत हरि प्रति हरी वलि बलवान ॥ १ ॥ भजन से खट खंड नव निधि, होत भरत समान । तिरै भवसागर तुरत, है पाप को अवसान ॥ २ ॥ नवल शूकर सिंह मर्कट, करि भजन सर्द्धन । मये वृषभ सेनादिक जगत गुरु, भजन के परवान || ३ ||
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy