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________________ [५२ ] शांति कुन्ध अरु मल्लि परलि के, मिटगये मेरे सब रोग ग॥५॥ नयनानन्द भयो बढ़भागन, हथनापुर संजोग री॥ ६H ११२-खयाल चौवंध गग जंगला। नृतो कर ले श्री जी का न्हवन जातरा जल की। तेरे सिरसे पाप की पोट जो हो जाय हलकी ॥ टंक अरे तेने मल मल धोई देह खिंडाये पानी। नहीं किया श्रीजी का न्हवन अरे अझानी ॥१॥ अरे तैने सपरश के बल भोगे भोग घनेर । नहीं मये तदपि संपूर्ण मनोरथ तेरे ॥ २॥ सर तैने ब्रह्मचर्य गजराज वेचि स्वर लीनो। ल जगत कला चल दुर्गति कहो कीनो ॥ ३ ॥ भरे अजहूँ चेत अचेत ख़बर नहीं कल की। तेरे सिरसे पाप की पोट जो होजाय हलकी ॥४॥ ११३-कलंगी छन्द । तेने रसना के बम पुद्गल सव वख लीने । तैने भून भुलस पटकायकू सङ्कट दीने ॥ १ ॥ तेने भाषी वीरण विकथा असत कहानी। दुर्वचन से वीधे मरम सताने प्राणी ॥ २॥ तेने चाखे नागर पान, जीभ छीली। तेरी नदपि रही यह जीभ थूक से गीली ॥ ३ ॥ अब करले मजन मेरे वीर, आश तजि कल की। तेरे सिर से पाप को पोट ज्यू होजोय हलकी ॥ ४ ॥
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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