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अश्वसेन वामा कुल नन्दन, जग बन्दन बन्धन विघटान ।। प्राणत स्वर्ग थकीचय आये, नगर बनारस जन्मे आन ॥३॥ नव कर उच्च सजल घन तन पग, पन्नग वन्श इक्ष्वाकु प्रमान ।। अवधिशतान्द धरण दुखनारुण, हरण कमठ शठ विधन वितान । ४ विषम रूप भव कूप विषे हम, पावत है प्रभु दुःख महान ॥ नयनानंद विरद सुनि तुमरो, गावत भजन करो कल्यान ॥ ५ ॥
४१-रागपरन [श्रीवर्द्धमान] जय श्री वीर जयति महावीरं. अतिवीरं सन्मति दातार | टेक ।। वर्द्धमान तुमरो जस जग में, तुम अन्तिम तीर्थ कर सार । पंचम काल विपें तुम शासन, करत जगज्जीवन उद्धार ।।१।। षोडस स्वर्ग थकी चय आये, साढ शुकल छठ गमे मझार । चैत्र शुकल अोदशी के अवसर, कुंडलपुर तुमरो अवतार ॥२॥ सिद्धारथ तृप चाप तुम्हारे, त्रिशला देवी मात तिहार । सोत हाथ तन तुंना तुम्हागे, नाथ वन्श के तुम सिरदार ॥ ३ ॥ सिंह चिह्न तुमरे पद सोहै, माघ अमित द्वादश जग छार । दशमी असित बैलाख भये तुम, सकल दग्व दरसी इकबार ॥४॥ पानांपुर लरवरपै प्रभु तुम, ध्यान धरो संयोग विलार । कार्तिक कृष्णा चौदसि की निशि, मावस प्रात बरी शिवनार ॥५॥ दुखम सुखम के तीन वरल अरु, शेष रहे वसुमास जवार । तादिन तुम्हें रतन दीपकते, पूजें सुर नर करि त्योहार ॥ ६ ॥ उस्से पांच वरस जब बीते, तव विक्रम सम्मत विस्तार । जव लग रहै धग नभ मंडल, नयनालंद जपो नवकार ॥ ७॥