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________________ १०] महाचंद जैन भजनावली। चन्द्र जानि जिनसेवे, धारि धारि मन मानी॥ जनि तुमसेवो ॥ ५॥ (१४) उदयज्यांको पापको बानैं कुण समझावेरे ॥ उदय । टैर ॥ मंत्री मिल जरासंधसे कही कृष्ण बली जगमाय। गोबरधन चिंट अंगुली धस्यो कंसको मास्यो आय ॥ उदय० ॥ १ ॥ लघु तुम भाई है बली अपराजित नाम कहाय। तॉको मारयो खड़गत जांकी नखन भई तुम थाय ॥ उदय० ॥२॥ समझायो समझे नहीं प्रानी कर्म उदय जब आय । कर्म किया सोहीभोगल्यो बुधमहाचन्द्र यं गाय ॥ उदय जाको० ॥३॥ (१५) भूल्योरे जीव तूपदतेरो। भूल्योरे ॥ टेर॥ पुद्गल जड़में राचि राचिकर, कीनों भवबनफेरो। जामण मरण जरा दोउ दाझ्यो भस्मभयो फल नरभव केरो ॥ भूल्योरे० ॥ १॥ पुत्र नारि बान्धव धन कारण पापकियो अधिकेरो। मेरो
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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