________________
ह
बुधजन विलास
बालक ज्वान बुढ़ापा मरना, रोगशोक उपजावना ॥ तन० ॥ १ ॥ अलख मूरति नित्य निरञ्जन, एकरूप निज जानना । वरन फरस रस गंध न जाकै, पुन्य पाप बिन मानना ॥ तन०॥२ करि विवेक उर धारि परीक्षा, भेद - विज्ञान वि चारना | बुधजन तनतें ममत मेटना, चिदानंद पद धारना || तन० ॥ ३
१५ राग – सारंग लूहरी
तेरो करि लै काज बखत फिरना || तरो ॥ टेक ॥ नरभव तेरे वश चालत है, फिर परभव परवश परना || तेरो० ॥ १ ॥ आन अचानक कंठ दवेंगे, तब तोकौं नाही शरना । यातें विलम, न ल्याय बावरे, अब ही कर जो है करना ॥ तेरो० ॥ २ ॥ सब जीवनकी दया धार उर दान सुपात्रानि कर धरना । जिनवर पूजि शास्त्र सुनि नित प्रति, बुधजन संवर श्राचरना ॥ तर० ॥ ३॥ १६ राग - लूहरी मीणांकी चालमे
अहो ! देखो केवलज्ञानी, ज्ञानी छबि
.