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________________ प्रेम तरंग (प्रथम भाग)-कविवर सूरजभानजी "प्रेम" नवीन तर्जको कविता करनेमें कमाल करते हैं आपने वाइसकोपकी नवोन २ त में इस प्रेम तरंगको लिखा है। न्यो० एक आना। प्रेम तरंग (द्वितीय भाग)-उक्त कविने ही यह दुसरा भाग लिखा है । न्यो०) ना-त्र० प्रेमसागरजीने भक्तिसे प्रेरित होकर आ० सूर्यसागरजीकी पूजन लिखी है । न्यो००) पिंड शुद्धि अधिकार-अर्थात् मुनिराजकी आहार विधी वर्तमानमें जो मुनियोंका भ्रमण हो रहा है, इसलिये यह पुस्तक बहुत उपयोगी है। सचित्र पुस्तकका मूल्य =) सज्जन चित्त बल्लभ-आचार्य मल्लिषेण कृत मुनियोंको शिथिलावादी न होनेके लिये यह मास्टरका काम करेगी. प्रत्येक श्रावकको चाहिये कि इसे अवश्य देखें। न्यो०३) दश लक्षण धर्म संग्रह-~अर्थात धर्म कुसमोद्यान नामक पुस्तक बिलकुल नवीन पं० पन्नालालजी, साहित्याचार्यसे लिखवा कर तैयार को है, प्रत्येक श्रावकको इसे अवश्य ही पढ़ना चाहिये। ऊपर संस्कृत नीचे हिन्दी टीका दी हुई है जिससे सबको समझनेमें सुविधा होगी। न्यो०।-) छहढालाकी कंजी-(सचित्र) छहढालाकी छहोंढालोंके शब्दार्थ इस तरह सरल भाषामें लिख दिये हैं कि मास्टरकी जरूरत नहीं है। इस कुंजीको मंगा लेनेसे बालक स्वयं पढ़ सकते हैं। मू००) मात्र।
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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