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________________ धवला-जयधवलादिके मंगलादि-पद्योंकी सूची ३२१ 15 सो अइरा आरामो मैथिली० प्र०६ सोहम्मे माहिदे धवला पा० ५० १६२ सो इह भणिय सहावो दन्वस० टी० ३६५ सो जयइ जस्स परमो जयध० प्रा० ५० ४२० सो धम्मो जत्थ दया णियम० टी०६ हय-हत्थि-रहाणहिवा धवला १-१-१ सोलसगं चवीसं तत्वार्थवृ० टि० १-- | हरिततणोसहिगुच्छा विजयो० ११२३ सोलसयं चउवीसं धवला १-२-१ हिंडंति कलमा वि अ मैथिली० ३-1 सोलसयं छप्पएणं धवला श्रा० ५० ६०३ | हेट्ठा मज्झे उवरिं धवला ६-३-२ सोलसविधमुद्देसं विजयो० ४२६ हेदाहरणासंभवे य धवला श्रा०प० ८३८ सोलह-सय-चोत्तीसं जयध० गा० १ होति फमविसुद्धाश्रो धवला श्रा० ५०८५८ सोलह सोलसहिं गुणं धवला १-४-२५ । होति सुहासवसंवर- धवला श्रा० ५० ८३६ नोट-इस सूची में कुछ ऐसे वाक्योंको भी शामिल किया गया है जो यद्यपि पुरातन-जैनवाक्य सूचीके किसी न किसी ग्रन्थमें ऊपर पृष्ठ १ से ३०८ तक श्राचुके हैं। परन्तु वे उस अन्यसे पहिलेकी बनी हुई टोकानोंमें 'उक्तं च' आदि रूपसे उद्धृत भी पाये जाते हैं और जिससे यह जाना जाता है कि वे वाक्य संभवतः और भी अधिक प्राचीन हैं और वाक्य-सूचीके निम अन्यमें वे उपलब्ध होते हैं उसमें यदि प्रक्षिप्त नहीं हैं जैसे कि गोम्मटसारमें उपलब्ध होनेवाले धवलादिकके उद्धत वाक्य-तो वे किसी अज्ञात प्राचीन अन्यप-से लिये जाकर उसका अग बनाये गये हैं। और इस लिये उन्हें भी इस सूचीके शीर्षकमें प्रयुक्त हुए 'अन्य' शब्द-द्वारा ग्रहीत समझना चाहिये। ४ धवला-जयधवलाके मंगलादि-पद्योंकी सूची श्रजियं जिय-सयलविभ धवला,वेयणा-अणि १६ [ इय भाविण सम्म अयघ० पसन्थि । अजजणंदि-सिस्सेणु- धवला, पसस्थि ४ | इय सहमं दुरहिगम जयघ० चरित० ख०पसत्यि ३ अज्मप्पविजाणिवुणा जयध० पच्छिमख० ४ | उज्जोइदायसम्म . जयध पसरिथ ५ अठतीसम्दि सासिय (सत्तसए) धवला, पसथि ६ -उवणेउ मंगलं वो अयध. १२-१ अणुभागभागमेतो जयध०५-३-१ | उवसमिद-सयलदोसे अयध०१४-१ अण्णायंधयारे एत्थ समपइ धवलिय जयघ. पसत्थि १ अभपडलंबसुत्तं जयघ० चरित्त० ख० पसस्थि ५ फम्मकलंकुत्तिएणं धवला १-५-१ अरविंदगभगउरं धवला, वेयणा अणि ५ | कुम्मट्टजणियवेयण- धवला, वेयणा-अरिण० २ अरहंतपदो (अरहंतो) भगवंतो धवला, पसत्यि ३ | | कुंथ-महंत संथुव- धवला. वेयणा अणि १४ अवगयअसुद्धभावे धवला १-७-१ केवलणाणुज्जोइयछदव्व- धवला १-२-१ असरसुरणरवरोरग- धवला, वेयणा अमि० १३ । केवलणाणुजे इयलोयालोए- धवला --- अहिणंदणमहिवंदिय धवना,वेयणा-अणि० ११ सविय-घण-घाइ-कम्म जयप०११-१ अगंगवमारिणम्मी अयध०१-४ | गणहरदेवाण णमो जयध० चरित्त० खं०पसन्थि । अंताइममरहिया अयध०२-१ | गुणहर-वयण-विणिग्गय- जयध०१-७ अंताइमज्महीणं धवला ३-६-१ चावम्हि व(तोरणि-वुत्ते धवला, पमत्थि ८ इय पणमिय जिणणारे जयघ०१०-२ धवला, पसथि ७
SR No.010449
Book TitlePuratan Jain Vakya Suchi 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1950
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size33 MB
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