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परिशिष्ट १ वाक्य-सूचीमें छपनेसे छूटे हुए वाक्य
अत्थाण वंजणाण य भ० श्रारा० १८८५ , णियखेत्ते केवलिदुग- पचस० १-६६ (ख) अवरादीणं ठाणं पचस० ४-६७ (क) | तत्तो अवरदिसाए जवृ० प० ६-६६ (क) अवाघादी अंतोमुहुत्त- पचस. १-६६ (घ) | तत्थ य अरिट्ठणयरी जबू० ५०८-२० (क) अतरकरणादुवरि लद्धिसा० २५१ (क) तिय-पण-छवीसेसु वि पचपं०५-२१६ (क) श्राहारस्सुदयेण य पचसं० १-६६ (क) | ति-सहस्सा सत्तसया तिलो० प० ४-११०० इंदियचउरो काया
पचल० ४-१५२ (क) ते मवे भयरहिया पचस० ५-३०३ (क) इंदियदोरिण य काया पचस० ४-१४७ (ख) | दम्मसुवरणादीयं छेदपिं० ४३ क (ख पुस्तके) इदियमेश्रो काओ पसं० ४-१४७ (क) | दसविक्खभेण गुण जवू०प० ४-३२ (क) इदियमेश्रो काओ पचस० ४-१५७ (क) | पढमक्खे अतगदे छेदपिं० २२६ क (ख, पुस्तक) उत्तमअंगम्मि हवे पसं० १-१६ (ग) | पाया जे छप्पुरिसा पंचस० १-१६१ .क) उत्तर-पच्छिम-भागे जबू० ५० ४-१३८ (क) | पुठवेण तदा गतु जबू०प०६-१०७ (क) उवणेउ मंगलं वो लद्धिसा० १५५ (स०टी०)| बलभदणामकूडा जबू० ५० ४-६८ (क) उवरयवधे संते पंचसं०५-१२ (क) | बलिगधपुप्फपउरा जबू० प० २-७२ (क) उववाद-मारणतिय- पचस० १-८६ (क) | बासहिजोयणाणि य जबू०प० ७-६६ (क) उववास-सोसियतणू जबू० प० २-१४७ (क) | भूदयवणफ्फदीसु पचसं० ४-३५५ (क) कक्केयणमणि-णिम्मिय- जवू०५० ४-१७४ (क) | मरगय-वेदी-णिवहा जचू० प० ६-१०७ (ख) कोडिसयसहस्साइ गो० जी० ११३ ख (म० टी०) मदारतारकिरणा जवू० प० ३-६१ (क) गूढसिरसधिपव्व पंचस० -८३ (क) | रयणायरेहिं रम्मो जवृ. ५०६-१०६ (क) घर सुक्खइँ सुप्पहु भणइ सुप्प० दो० ५४ विणयेणुवक्कमित्ता भ० श्रारा ४१५क(मूला०द०) चउथे पंचमकाले जंबू० ५० २-१८७ (क) | विसयासत्ता जीवा जवृ०५० ११-१५५ (क) चउवधयम्मि दुविहा पचस० ५-१२ (क) | वेमाणियणरलोए भ० श्रारा० ५१ (भाषा टी.) चउसट्ठी अट्ठमया पचप०४-३१५ (क) | सत्तत्तीससहस्सा तिलो० ५० ४-१६६७ चालीसं च सहस्मा जवू०प० ६-७३ (क) मदहया पत्तियया भ० श्रारा० ४८ क (मूला०द.) जह खेत्ताणं दिट्ठा जबृ० प० २-१०७ (क) सम्मे असखवस्मिय ल द्धिगा० १५५ क (स०टी०) जे सेसा सुक्काए
भ० श्रारा. १६२० । मयजोयण-आयामा जवू०प० ४-१३८ (क) मल्लरिमल्लयस्थी - तिलो. प० २-३०५ | सव्वाणं इंदाण जंवृ०प० ४-२६७ (क) णाणं पंचविहं पि य पंचस० १-१७८ (क) सेमाणं तु गहाण जवृ० प० १२-१४ (क) णामेण अजण णाम जवृ० १० ११-३०६ (क) सोलम चेव चउक्का जवृ० ५० १२-४३ (क)
नोट-पचसग्रह और जबूदीवपण्णत्तीके वाक्योंका इस सूचीमें बाद को मिली हुई श्रामेर (जयपुर) की प्राचीन (क्रमश वि० सं० १७६६, १५१८ की लिखी ) प्रतियोपर से सग्रह किया गया है, इसीसे पूर्व प्रकाशित जिस जिस वाक्यके वाद वे उपलब्ध हुए हैं उनके अनन्नर क, ख आदि जोडकर उनके स्थानका यहाँ निर्देश किया गया है।