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________________ प्राकृतपद्यानुक्रमणी १८१ दिव्यामोयसुगंधा जबू०प०३-२०७ दीवा लवणसमुद्दे तिलो. प० ४-२४७६ दिव्यामोयसुगधा जबू० ५० ५-२६ | दीवे कहि पि मणुया भावस०५३७ दिव्यामोयसुगधा ज० प०६-१२६ दीवेसु णगिदेसु तिलो. प. ३-२३८ दिव्युत्तरणसरित्थ(च्छं) रयणसा० १२० | दीवेसु तेसु णेया जबृ० प० १०-३६ दिवे भागे अच्छरसानो भ० श्रारा० १६०० | | दीवेसु सायरेसु य वसु० सा० ५०६ दिव्येहि य धूवेहि य जव० ५० ५-११७ | दीवहिं णिय-पहोह-जिय- वसु० सा० ४३६ दिसिफरिवरसेलाण जबू प०६-१८ | दीवहिं दीवियामस- वसु० सा० ४८७ दिसिदाह उक्कपडणं मूला० २७४ दीवोदहिपरिमाण जबू० ५० १२-५५ दिसि-विदिसतम्भाए तिलो० ५० ५-१६६ / दीवोदहिसेलाणं जबू० ५० १३-३१ दिसि-विदिसाणं मिलिदा तिलो० ५०२-५५ / दीवोदहिसेलाणं तिलो. प०१-१११ दिसिगयवरणामाणं जबू० ५० ११-७७ ! दावावहाण एवं जबू० ५० १२-५० दिसिगयवरेसु असु जवू० ५० १-७१ दीवोवहीण रूवा जबू० ५० १२-५३ दिसि-विदिमअंतरेसुं तिलो० ५०४-१००३ दोव्वंति जदो णिचं गो० जी० १५० दिसि-विदिसहिं परिमाणु करि सावय० दो० ६६ | दीसइ अवरो भरिओ श्राय० ति० -७ दिसि-विदिस तद्दीवा जवृ० १० १०-४६ दीसइ जल व मयतण्डिया भ० श्रारा० १२५७ दिसिविदिसतरगा हिम- तिलो० सा० ६१३ | | दीसेइ जत्थ रूवं रिट्टस०६८ दिसिविदि सिपञ्चखाणं भावसं० ३५४ | दीहकालमयं जंतू मूला० ५०७ दिमिविदिसिमाण पढम चारित्तपा० २४ दीहत्तमेककोसो तिलो. प०४-१५२ दीवहिचारखित्ते तिलो० सा० ३६६ | दीहत्तरंदमाणं(णे) तिलो. प०४-८४५ दीओ सयभुरमणो तिलो० प०५-२३८ | दीहत्तं बाहल्ल तिलो० प० है-१० दीणत्त-रोस-चिंता- भ० श्रारा० १५६१ / दीहत्ते विचियादे (१) तिलो. प०४-२०४५ दीणाणाहा कूरा तिलो० ५० ४-१५१७ / दीहेण छिदिदस्स य तिलो० ५०८-६०६ दीपकभिंगारमुहा तिलो. प०४-२७२१ | दुअ(ग)तीस चउर पुवे पचस ० ?-१२ दीव दिएण जिणवरहें सावय० दो० १८८ | दुइयं च वुत्तलिंग सुत्तपा० २१ दीवजगदीए पासे तिलो० प० ४-२४७ दु-कला बेकोसाहिय ज्बू० प०८-१७६ दीवज्जोई कुणइ , वसु० सा० ३१६ | दुक्कियक्म्मवसादो कत्ति० अणु०६३ टीवद्धपढमवलये तिलो. सा. ३५० दुक्खइँ पावइँ असुचि य: परम ० ५०२-१५० दीवम्मि पोक्खरद्धे तिलो० ५० ४-२७६० दुक्खक्खयकम्मक्खय- भ. पारा० १२२५ दीवयसिहा दु एगा रिहस० ४८ दुक्खतिघादीणोघं में गो० क० १२८ दीवसमुद्दे दिएणे तिलो० सा० ३० दुक्खतिघादीणोघं में क्म्मप० १२४ दीवसिहापजलंतो रिट्ठस०५६ दुक्खभयमीणपउरे मूला० ७२७ दीवस्स पढमवलए जबू० ५० १२-४८ दुक्खयरविसयजोए कत्ति० अणु० ४७१ दीवस्त समुहस्स य जंबू०प०१०-११ दुक्ख-वह-सोग-तावा क्म्सप० १४६ दीवस्म हु विक्खंभो जबु०प०६-८४ दुक्खस्स पडिगरेतो भ० श्रारा० १७६५ दीवगदुमा णेया जवू० प० २-१३२ दुक्खहॅ कारणि जे विसय परम प० १-८४ दीवंगदुमा माहा- तिलो. प. ४-३४६ दुक्ख] कारणु मुरिणवि जिय परम० प० २- २७ दीवं मयंभूरमण जंबू० प० ।-८८ दुक्रवह कारण मुणिवि मणि परम०प०२-१२३ दीवारण समुदाण य जवू०प०२-१६८ दुक्ख उप्पादिता भ. श्रारा. १२७१ दीवादी अवियंति [य] अंगप०१-३० दुक्खं गिद्धीघस्थस्मा- भ० श्रारा० १६६३ दीवायण माणवको तिलो. प० ४-१५८४ ! दुक्ख च भाविद होदि भ० भाग० २३६
SR No.010449
Book TitlePuratan Jain Vakya Suchi 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1950
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size33 MB
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