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________________ प्राकृतपद्यानुक्रमणी १५१ -- ततो णपुसगित्थी म० श्रारा० २०६७ तत्तो पच्छिमभागे तत्तोऽणतरसमए भ० श्रारा० २१०३ तत्तो पडिवजगया। तत्तो णिस्सरमाण वसु० सा० १४८ तत्तो पढमे पीढा तत्तो रणीमरिउण कत्ति० अणु० ४० तत्तो पढमो अहिओ तत्तो णीसरिञ्ण कत्ति० अणु० २८६ तत्तो पदेयवड्ढी तत्तोऽणुभयहाणे लद्विसा० १६४ तत्तो तविदो(सीटोA)तवणो तिलो०२०-४३ | तत्तो परंण गन्छ। तत्तो तव्वणवेदिं तिलो० ५० ५-१३१६ तत्तो परंतु गेवेज्ज तत्तो तव्वणवेदि तिलो. प० ४-१३२३ तत्तो पर तु णियमा तत्तो तसि(वि)दो तवणो जबू० ५० ११-१५१ तत्तो पर तु णियमा तत्तो तागुत्ताणं गो० जी० ६३८ तत्तो परंतु णियमा तत्तो ति-यरणविहिणा तद्विमा० २०४ | तत्तो पर तु णियमा तत्तो दक्खिणभरहस्सद्ध तिलो० सा० ५६६ तत्तो पर विचित्ता तत्तो दस उप्पइया जबू०प० २-४२ तत्तो परं विचित्ता तत्तो दहाउ पुरदो तिलो० प० ४-१६१५ तत्तो पर वियारणह तत्तो दहादु पुरदो जबू० प०५-५८ तत्तो पलाय(यि) उण तत्तोऽदित्थावणग लद्धिमा० ६२ तत्तो पलायमाणो तत्तो दु असखेज्जा जवू० प० ११-२०१ तत्तो पल्लसलायच्छेतत्तो दु असंखेजा जबू० ५० ११-२०३ तत्तो पविसदि तुरिम तत्तो दुक्खे पथे म० श्रारा० १३६ तत्तो पविसदि रम्मो तत्तो दुगुणं ताओ तिलो० प०८-३१५ तत्तो पंच-जिणेसु तत्तो दुगुणं दुगुण तिलो. ५००-२३७ तत्तो पुवदिसाए तत्तो दुगुणा दुगुणा जबू० प०३-१५१ | तत्तो पुव्वाहिमुहा तत्तो दु दक्विणटिस जबू० प०८-८५ तत्तो पुव्वेण पुणो तत्तो दु पभादो विय जबू०प०११-३१० तत्तो पुरेण पुणो नत्तो दु पव्यनढो जवृ० प०६-१७८ | तत्तो पुवेणं तह तत्तो दु पुणो गंतुं जंवू० ५० ११-२०३ तत्तो बहुजोयणयं तत्तो दुममंठादो जवृ० ५० ५-५२ तत्तो वे-कोसुणो तत्तो दु विमाणादो जबू० ५० ११-२२४ तत्तो भवणखिदीयो तत्तो दु वेदियादो जबू०प०६-३ | तत्तो मास बुब्बुदतत्तो दु वेदियादो जवू०प०६-५ तत्तो य अद्धरज्जू तत्तो दुसए तीदे दसणसा० ४० तत्तो य पुणो अरुण तत्तो दु संकमादो जबू० ५० ७-१३२ तत्तो य वरिस-लक्ख तत्तो दुस्सम-सुसमो तिलो. प० ४-१५७४ तत्तो य सुहमसंजमतत्तो दो इद(ह)रज्जू तिलो० ५० १-१५५ तत्तोरणवित्थारो तत्तो देववणादो जबू०प०८-88 तत्तोरालियदेहो तत्तो देववणादो जवृ. ५०६-८७ तत्तो लातवकप्पप्पतत्तो दो वे वासो तिलो०प० ४-१५१३ | तत्तोवरिम्मि भागे तत्तो धयभूमीए तिलो० प. ४-८१६ तत्तो वरिस-सहस्सा तत्तो पच्छिमभागे तिलो० ५०४-२११२ / तत्तो ववसायपुर जबू०प०१-१३ लद्विसा० १६३ तिलो० प०४-८६३ लद्धिसा० ६४ तिलो० प० ५-३ ५ तिलो०१०४-१६२१ भावस० ६८६ मृला. १९८० मूला० ११४३ मृला.११७४ मूला० ११७६ मूला० १९७८ जवृ० ५० ५-६४. जवृ० ५० ५-६५ जब० ५० ५-६७ वसु० सा० १५१ वसु० सा० १५४ गो० ० ४३२ तिलो० प० ४-१५६४ तिलो०प०४-१९५३ तिलो. प०४-१२४ जब० प. ८-७४ रिलो. प० ४-१३१७ जव० ५०८-15 जब० प०६-१२ जव०प०८-३१ तिलो० सा०५०४ तिलो० प० ४-७१५ तिलो. प० ४-३६ भ. श्रारा० १००८ तिलो. प० १-१६१ जब० ५० १५-२०६ जब. प. ४-५७६ लद्धिस . १६५ तिलो० सा० ६०२ मूला० १२४३ गो० जी० ४३५ जबू० ५० ८-१०० तिलो. १०४-180 तिलो० ५०३-२१८
SR No.010449
Book TitlePuratan Jain Vakya Suchi 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1950
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size33 MB
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