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________________ Τ 15 ज जो परदव्यं ण हरइ जो परदव्वं तु सुहं जो परदेहविरत्तो जो परदोस गोवद जो परमत्यें किलु वि जो परमप्पर परमपउ जो परमप्पा गाणमर जो परमप्पा सो जि हउ जो पर महिला कज्जे जो परिमाण कुव्वदि जो परियार अप्प परु जो परियाणइ अप्पु परु जो परिवज्जइ गथ जो परिहरेत जो परिहरेदि संग जो परसइ समभाव जो परसदि अप्पा जो परसाद पाण जो परसदा जो पाउ वि सो पाउ मुगि जो पाव मोहिमदी जो पनि मोहक सो जो पिंडत्थु पत्थु बुह जो पुच्छर थिरके जो पुच्छि ग याड जो पुज्जर अवस्य जो पुढविकाइजी करि - जो पुढविकायजी वे जो पुरा इच्छति रमिदु जो पुरण एवं जो पुरण कित्तिणिमित्त जो पुर गोगारिमुह 'जो पुरण चिंतदि कज्जं जो पु जो पुरण जहणत्तम्मि जो पुरा गिरवराधी (हो) जो पुरण तीसदिवरिसो जो पु धम्मो जीवेजो पुरा पदव्य जो पुणमिच्छादिट्टी प्राकृतपद्यानुक्रमणी १० प्र० ८७ ० ३३६ | जो पुरण लच्छिं संघटि जो पुरण विमयविरतो वति० जो पुरण सम्मादिट्ठी कति० अ० ४१८ | जो पुरण (घर) हुतइँ धरण करणइँ परम० प० १–३७ | जो पुणु वड्डुद्धारो (?) परम० प०२-२०० | जो बहुमुल्ल वत्युं परम० प०२-१७५ | जो बहुवो सो हु कडी जोगसा० २२ | जो बोलड अप्पारणं भावसं० २२२ जो भइ को वि एवं कति ० ० ३४० | जो भत्तउ रयण-तयहॅ जोगसा० ८२ | जो भत्तउ रयण-तयह जोगसा० = जो भत्तपदिएणाए कत्ति ० ० ३८६ | जो भत्तपदिरणाए कत्ति० श्रणु० ३५१ जो भावरणमोक्कारेकत्ति ० ० ४०३ | जो भिज्जइ सत्थे चसु० सा० २७७ | जो भुंजदि श्रधाकम्म णियमसा० १०६ जो मलयम कत्ति० तिलो० ५० ६-६७ समय० १४ | जो मज्झमम्मि पत्तम्मि समय० १५ जो मइंदियविजई जोगसा० ७१ जो मादि जीवैमि य लिंगपा० ३ | जो मरणदि पर महिल तिलो० प० ६-२१ जो मद हिंसामि य जोगसा० ६८ | जो मरइ जोय दुहिढो श्राय० ति० ५-५ जो महिलाससग्गी थाय० ति० १३ - १ भावस० ४५६ सूजा० १००६ मूला० १०१० भ० श्रारा० १२६८ | जो मुणिभत्तवसेसं भ० श्रारा० १६०७ | जो मोहरागदोसे कत्ति० श्रणु० ४४२ जो मोहं जिणित्ता भावसं० २४५ | जो मोहं तु मुइत्ता कत्ति० गु० ३८६ जोयण-अट्टहस्सा भाव० ४२ जोयण - श्रट्टावीमा वसु० सा० २४७ | जोयरण- अनुच्छेहा समय० ३०५ | जोयरण - श्रकुच्छे हो मूला० ६०२ | जोयरण- उरगतीससया भ० श्रारा० १७५२ | जोयरण-वरणउदिसया मोखपा० १५ | जोयरण-रणव य सहस्सा भ० श्रारा० ५ | जोयण- तीससहस्सा • | जो मंगलेहि सहिदो जो मिच्चुजरारहिदो १२७ कत्ति० अणु १३ कत्ति० अणु० १०१ जब्रु० प०२-११७ भावसं ०५१६ (क्षे०) भावसं० ४४८ कत्ति ० अ० ३३५ जंबू ० प० ४-३१ भावसं ० ५५५ भावस० २८० परम० प० २-३१ परम० प० २-६५ जो मिच्छत्तं गतूजो मुगि छवि विसयसुह भ० श्रारा० २०३० भ० श्रारा० २०८ भ० श्रारा० ७५६ रिट्स० १२७ मूला० ६२७ श्राय० ति० ६-६ वसु० सा० २४६ कत्ति ० ० श्रणु० ४३८ समय० २५० कत्ति० श्रणु० ३३८ समय० २४७ समय० २५७ भ० श्रारा० ११०२ जबृ० प० १३-१११ जंवृ० प० १३-८६ भ० धारा० १६६५ पाहु० दो० १६ रयणसा० २२ पचयणसा० १-८८ समय० ३२ समय ० १२५०६ (ज) तिलो० प० ४-१७२० अबू० प० २-१४ जवू० प० १-२६ तिलो० प०४-१८१८ विलो० प० ४-१७७६ तिलो० प०४-१७४० तिलो० ४-१८३ तिलो० प० ४-२०२२
SR No.010449
Book TitlePuratan Jain Vakya Suchi 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1950
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size33 MB
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