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________________ ज जाव पमाए वट्टइ जावय खेम सुभिक्ख जावय बलविरियं से जावय सदी ण णस्सदि जावं अपडिकमणं जावंतरस्स दुचरिमजावति किंचिदुक्खं जाति केइ भोगा जावंति के संगा जाति केइ संगा जावंतु किंचि लोए Tags सा जावुवरिमगे वेज्जं जावे (हे) दुप्पो वा प्राकृतपद्यानुक्रमणी भाक्सं० ६०५ जिरण- देवो होउ सया भ० श्रारा० १५६ | जिरण - पडिमई कारावियहॅ जिरण - पहिमागमपोत्थय जिरण- पडिमा - संछो जिरा-पढिरूवं वरियाजिरण- पयगय - कुसुमंजलिहिं जिण-पासादस्स पुरा ० प्रा० २०१४ भ० प्रा० १५८ समय० २८१ लद्धिसा० २१२ " | भ० श्रारा० १६६७ भ० श्रारा० १२६१ | जिरणपुरदुवारपुरदो भ० श्रारा० २६४ जिणपुर पासादारणं जिण पूजा-उज्जोगं भ० श्रारा० ११८० भ० प्रा० २१४५ | जिरणपूजा मुरिदा भ० श्रारा० १७८ जिरविचं गाणमयं मूला० ११७५ | जिणभवणइँ कारावियहॅ मूला० ६२७ | जिरणभवण थूह-मंडवभ० श्रारा० १०५६ जिणभवरणपहुदी जा सव्व सुदरंगी जा सकप्पवियप्पो समय० २७० दे० २३ ( ज०) जिणभवणस्सवगाढं जा संपविप्पो जासंकोचि | जा सासया लच्छी जासु जणणि सग्गागमणि जासु को मोहु मउ जासु धार घेउ वि जासु रण वण्णु रग गधु रसु जासु हिसि उसा जाहि व जासु व जीवा * जाहि व जासु व जीवा जाहीर अणुभागेजा सा जिउ मिच्छत्तें परिणमिउ जिणइंदवरगुरूणं जिण इंदाणं चरियं | भावसं० ३२२ | जिणभवणगरण देसे भावसं ० ६१२ जिरणभवणारण वि सखा कत्ति० अ० १० | जिराभव असा सावय० दो० १६० | जिरणमग्गबाहिरं ज परम० प० १- २० जिरणमग्गे पव्वज्जा परम० प० १-२२ जिएमहिम- दंसणेण परम० प० १-१६ जिरणमदिर- कूडारण सावय० दो० २१४ जिरणमंदिर जुत्ताई पचसं ० १-५६ जिरणमदिर - रम्माओ गो० जी० १४० जिरणमुदं सिद्धिह कसायपा० १७२(११६) जिए लिंगधरो जोई भ० प्रा० १६६२ | जिगलिंगधारिणो जे परम० प० १-७६ जिलिंगे मायावी जबू० प० ६-१२६ | जिरणत्रय गहिसारा जबू० प० १-८५ जिरणचयरिणच्छिदम दी जबू० प० ८-११४ | जिरणवयरणधम्मचेइयजवू० १०५ - २७ जिरणवयधम्मचेइयशियमसा० ११५ | जिरणवयणभाव तिलो० सा० ६६५ जिरणवयणभासिदत्थ जिरण - चरिया (याणि) लपंता तिलो०प०५ - ११५ जिरणवयण मणुगता जिइंदाणं या जिइदा डिमा जिग-कहिय-परमसुत्ते जिरण - गिहवासायामो जिरा - जम्मरण - क्खिवर जिर-पारण- दिट्ठि-सुद्धं जिण - दिट्ठणामइंदयजिरा- टिट्ठपमारणाओ सु० सा० ४५२ | जिरणवयणमेव भासदि चारित्तपा० ५ जिरणवयणमो सह मिण तिलो० प० ८-३४७ जिरणचयरण मोसह मिणं तिलो० प०३ - १०८ | जिरणवयणमोसह मिणं * ११७ क्ल्लाणा० ४८ यावय० दो० १६२ छेदपिं० १६८ जंबू० प०३-१६१ भ० श्रारा० ८५ सावय० दो० १६१ तिलो० प० ४-१८८४ तिलो० प० ४-१६४० तिलो० प० ४-७५१ त्रिलो० प० ८-५७५ रयणसा० १३ बोधपा० १६ सावय० दो० १६३ जबू० प० ५-१२२ तिलो० प० ४-२०५१ जबू० प०५-८ छेदपि ० ३१३ जबू० प० ६-७४ तिलो० सा० ६८४ दसासा० २३ बोधपा० ५४ तिलो० प०८-६७६ तिलो० प० ४-१६६६ तिलो० प० ४-४० तिलो० प० ४-२४५३ मोक्खपा० ४७ रयणसा० १६४ तिलो० प० ८-५५६ तिलो० सा० ६२२ सोलपा० ३८ मूला० ८४२ वसु० सा० २७५ कल्लाणा० २५ कत्ति० श्रणु० ४८७ मूला० ८६० मूला० ८०५ कत्ति० श्रणु० ३६८ दंसणपा० १७ मूला० ६५ मूला० ८४१
SR No.010449
Book TitlePuratan Jain Vakya Suchi 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1950
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size33 MB
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