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________________ प्राकृतपद्यानुक्रमणी ११३ ज जह थक्कउ दव्वु जिय परम०प०२-२६ | जं तत्थ देव-देवी- जबू०प०११-२०० ज जं अक्खाण सुह रयणसा० १३६ जं तल्लीणा जीवा तथ्वसा० ७३ जंज करेइ कम्मणयच० ४३ | जतं मंत ततं रयणसा० २८ जज करेइ कम्म- दव्वस० णय० २१५ | जंतारूढो जोणिं छेदपिं० ११ ज जं खवेदि किट्टि फसायपा० २१८ (१६५) जंतु दिसावेरमणं धम्मर० १४८ ज जं जिणेहि दि8 दवस० णय०२ | जं तेण कहिय-धम्मो जबु०प०१३-१३८ जं जं जे जे जीवा मूला० ६८६ | जतेण कोदवं वा * कम्मप० ५४ ज जं मुणदि सुदिट्ठी दव्वस० गय० २६४ | तेण कोहवं वा गो० क. २६ जं जं सयमायरियं भावसं० १३६ | ज तेणतरलद्धं मूला. १५७ जं जाड-जरा-मरणं रयणसा० १५३ / जं तेहिं दु दादव्वं मूला० ५६८ जं जाणइ त णाणं मोक्खपा० ३६ । जं दव्वं तरुण गुणो पवयणसा०२-१६ ज जाणइ तं गाणं चारित्तपा०४ । ज दामणंदिगुरुणो श्राय० ति०१-२ ज जाणिऊण जोई मोक्खपा० ३ | ज दिज्जइ तं पावियइ सावय० दो० १२ जं जाणिण जोई मोक्खपा० ४२ मूला० ५४७ ज जाणिज्जइ जीवो कत्ति. अणु० २६७ ज दीसइ दिट्टीए रिट्ठस० १३१ जं जाणेइ सुदं तं सुदख० ८३ ज दुक्कड तुमिच्छा मूला० १३२ ज मिय दिज्जइ इत्थुभवि सावय० दो० ६५ | जं दुक्खं संपत्तो म० श्रारा० १५६७ जं जीवणिकायवहे- भ० श्रारा० ८१६ जं दुक्खु वि तं सुक्खु किउ पाहु. दो० १० जं जेण फलसरूवं श्रायः ति २२-६ | ज दुप्परिणामाओ वसु० सा० ३२६ जं जोयणवित्थिएणं ४ जवू० ५० १३-३५ जंधणुसहस्सतुंगा तिलो० ५० ४-२५११ ज जोयणवित्थिएण x तिलो० सा० ६५ | जं पच्चक्खग्गहणं । सम्मइ०२-२८ ज भाएई (इज्जइ) उच्चा- वसु० सा०४६४ । जंपणपरभवणियडिप- भ० श्रारा० १२१ ज णत्थि बंधहेदु भ० श्रारा० १३७ | जं परदो विण्णाणं पवयणसा०१-५८ जणत्थि राय-दोसो* भावस०६७० जं परमप्पय तच्चं णाणसा० ४८ ज णत्थि राय-दोसो *- पंचस० १-२८ | ज परिमाणविरहिया धम्मर० २६ जंणत्थि सव्वबाधा- , भ० श्रारा० २१४६ | जं परिमाण कीरइ वसु० सा० २१२ जणा(जएणा)णरयणदीपो तिलो० प०५-३१६ | परिमाण कीरड वसु० सा० २१६ ज पाणीण वियप्पं + गयच.. ज परिमाणं कीरइ (दि) कत्ति० अणु० ३४२ जंणाणीण वियप्प + दव्वस० णय० १७३ तिलो० सा० १००८ जणामा ते कडा तिलो० प०४-१७२४ तिलो० ए०४-२१५६ जणामा ते कूडा तिलो० प० ४-१७५८ | जंपति अस्थि समये सम्मइ०३-१३ ज णिम्मलं सुधम्म बोधपा०२७ | ज पाणयपरियम्मम्मि भ० श्रारा० ७०६ जं णियदव्यहँ भिएणु जडु परम० ५० १-११३ |ज पीयं(कयं)सुरयाण(सुरापाणं) धम्मर० २८ जणियबोहरु बाहिरउ परम प० २-७५ जं पुण स्वीदव्व भावसं०३१७ जणियम-दीवपउर जंबू०प० १३-१७४ जं पुण सगयं तच्च तच्चसा०५ जंणीलमडवे तत्त- भ० श्रारा० १५६६ | जं पुण संपइ गहियं भावस० १५० ज णोकसाय-विग्घर- लद्धिसा० ६१० ज पुणु वि णिरालंबं भावसं०३८१ जंणोकसाय-विग्घच- लद्धिंसा० ६५१ जं पुप्फिद किएगाइद मूला०८२३ जं तक्कालियमिदर पवयणसा० १-४७ ज पेच्छदो अमुत्तं पवयणसा० १-५४ जं तत्तणाण-स्वं परम०प० २-२१३ । जं बद्धमसंखेज्जा भ० नारा०७१७ he -
SR No.010449
Book TitlePuratan Jain Vakya Suchi 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1950
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size33 MB
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