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जन्म
बालक को सदा के लिये कायर, डरपोक और भीरु बना कर उस का जीवन नष्ट कर रही है। इस प्रकार से भयभीत हुआ बालक भविष्य मे साहसी, शूरवीर और निर्भय नहीं बन सकता। यही कारण है कि आज कल आर्य प्रजा मे भी वह वीरता वह निर्भ यता और वह साहस नहीं है, जो पहले था । कुमार पाश्वनाथ की धायें इस रहस्य को जानती थी और वे भूल कर के भी कभी ऐसा अनुचित व्यवहार नहीं करती थी।
रोते हुए बालक को चप करने का एक अमोघ साधन दूध पिलाना मान लिया गया है। बालक चाहे जिस कारण से रो रहा हो माता समय-असमय का विचार न करके जल्दी से उसके मुंह मे स्तन दे देती है। यह भी एक प्रकार का अज्ञान है । वालक को एक अनिश्चित मात्रा मे दूध कभी नहीं पिलाना चाहिए । समय-असमय का भी विचार करना चाहिए। ऐसा न करने से बालक को अजीर्ण हो जाता है और उसका स्वास्थ्य अधिक खराब हो जाता है । वालक सदा मुख से ही नहीं रोता । उसके रोने के अन्य भी अनेक कारण हो सकते हैं । उनको खोजना माता या धाय का कर्तव्य है, इस तथ्य को भी पार्श्व की धात्रियां
अच्छी तरह समझती थीं । धाये बालक को सदैव साफ-सुथरा ... रखती थीं । मैला-कुचैला रखने से रोग वढते है।
__इस प्रकार चतुर धायों के द्वारा पालन होने के कारण बालक पार्श्व सदा प्रसन्न रहते थे, स्वस्थ रहते थे और उनकी प्राकृतिक शक्तियों का अच्छा विकास हो गया था। धीरे-धीरे बाल्यावस्था समाप्त हो गई और बालक पायने व कुमार यवन्या में प्रग लिया।