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छठा जन्म
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mananananam धर्मी बनाते है, उनका जीवन, जन्म और धन वस्तुत: सार्थक होता है । शिथिल व्यक्तियों को फिर से दृढ़ बनाने के लिए पर्ण शक्ति का प्रयोग करता महान् उपकार का कार्य है । जैसे रोगी को वैद्य का सहारा मिल जाने पर वह रोग से मुक्त हो जाता है, उसी प्रकार अपने अज्ञान या शैथिल्य के कारण जो आध्यात्मिक हीनता की ओर अग्रामर हो रहे हैं,उन्हें यदि थोड़ा भी सहयोग मिल जाय, तो वे भी पुनः सन्मार्ग पर आ सकते है। अतएव धर्म से पतित हुए व्यक्तियों से घणा करना, उनमे परहेज करना, उन्हें धत्कारना घोर अज्ञानता एवं अधार्मिकता है । इसके विरुद्ध शिथिलाचारी, पथभ्रष्ट और पतित व्यक्तियों को प्रेमपूर्वक गले लगाना, उन्हें सान्त्वना देना, सहयोग देना, उनकी रक्षा करना, सम्यक्त्वधारी का प्रथम और आवश्यक कर्त्तव्य है । जो लोग अपने इस कर्त्तव्य का पालन नहीं करते, वे धर्म के प्रति सच्ची निष्ठा नहीं रखते । वे पतित प्राणियों के और अधिक पतन मे निमित्त वनते है। लोक मे अनेक ऐमी घटनाएँ देखी और सुनी जाती है,जिनसे यह ज्ञात होता है, कि बहुत-से स्त्री-पुरुप अपनी थोड़ी सी प्रारंभिक अमावधानी के कारण, संयम या नीति मर्यादा से चिगे, तो दूसरों ने उसके साथ अयोग्य एवं निंद्य व्यवहार किया,कि वे अधिक पतन की ओर अग्रसर हुए, ऐसा ह ने से उस व्यक्ति का ही अहित नहीं हुआ, किन्तु संघ की मर्यादा ओर शक्ति भी क्षीण हुई है। इस प्रकार करने वाले लोग, अपने को वर्मात्मा घोपित करते हुए भी वास्तविक धर्मात्मा नहीं है । सचा सम्यग्दृष्टि पतितो के उद्वार के लिए शक्ति भर प्ररत्न करता है। धर्म, पतितों को पावन बनाने के लिए ही है। यदि वह पतितों का उद्धार न करता, तो बडे-बड़े चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव आदि अपने विशाल साम्राज्यको ।