________________
पार्श्वनाथ के पूर्व जन्म
पहला जन्म इसी जम्बूद्वीप के दक्षिण भारत में पोतनपुर नामक एक बड़ा ही सुन्दर नगर था। उसके बाजारों की छटा अनुपम थी। नगर के बाहर रमणीय बाग-बगीचों और सरोवरों के कारण चारों ओर का दृश्य अतिशय मनोहर और मोहक था । वह दर्शकों के चित्त को अनायास ही अपनी ओर आकृष्ट कर लेता था।
उस समय पोतनपुर के राज्य-सिंहासन पर 'अरविन्द' नामक एक प्रजाप्रिय नरेश सुशोभित थे। वे राजनीति के पूर्ण ज्ञाता थे और व्यवहार में भी उस नीति का प्रयोग करते थे। उनके शासन में किसी की क्या मजाल थी कि दूसरे को ऊँगली वता सके । राजा स्वयं धर्मनिष्ट था और प्रजा भी 'यथा राजा तथा प्रजा' की लोकोक्ति को चरितार्थ करती हुई धर्म परायणथी। महाराज अरविन्द अपनी प्रजा को सन्तान के समान समझ कर यथासंभव सभी उचित उपायों से उसे सुखी, सम्पन्न और समृद्ध वनाने में सदा उद्यत रहते थे। प्रजा पर कर का असह्य भार न था । साम्राज्योपयोगी व्यय के लिए ही सामान्य कर लिया जाता -था । जव राजा की ओर से किसी प्रकार का अनौचित्य न था तो प्रजा भी न्याय-संगत राज्य-कर को अपने आवश्यक व्यय मे सम्मिलित समझती और प्रमाणिकता के साथ समय पर उसे चका देती थी। राजा भी इतना प्रजापालक और न्याय परायण था कि प्रजा द्वारा प्राप्त उस कर के द्रव्य को अपने व्यक्तिगत भोगोपभोग के साधनों मे खर्च न करता हुआ प्रजा की समृद्धि