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पार्श्वनाथ
राजा-मंत्री, वैद्य ने केवल आम्र-फल खाने का निषेध किया है। उसकी छाया में न बैठने की विशेषता नो पथ्य-पालन की दृढ़ता को सूचित करने के उद्देश्य से मैंने अपनी ओर से जोड़ दी थी । वास्तव में उसकी छाया के नीचे बैठ जाने में कोई हानि नहीं है। __ राजा का उत्तर सुन मंत्री चुप हो गया। दोनों आम की ओर वढ़े और उसी पेड़ के नीचे विश्रान्ति करने लगे । उन्हें आये थोड़ा ही समय हुआ था कि एक सुन्दर सुपक आम्रफल राजा के सामने कुछ दूरी पर आ गिरा। राजा ने कहा~मंत्री जी, मुझे भली भांति पता है कि आम खाना मेरे लिए अपथ्य है । वह मुझे पुनः संकट में डाल देगा । परन्तु उसे देखना और संघना तो निषिद्ध नहीं है। लाओ जरा इस आम को देख-संघ।।
राजा की आज्ञा भला कौन टाले ? मंत्री चुपचाप उठा, आम लाया और राजा को पकड़ा दिया । राजा ने आम सूघा तो मुंह मे पानी आगया। मंत्री से कहा इसके ऊपर के छिलके उतारो। मत्री ने छिलके उतार दिये । राजा ने कहा-फांके करो। मंत्री ने फांके करदी । राजा वोला-फांके मेरे हाथ पर रखदो। मंत्री ने हाथ पर रखदी । तब राजा ने तर्क का उपयोग किया। कहा देखो मत्री, वैद्य का प्राशय यह था कि आम को पेट मे न उतरने देना चाहिए । मैं इन फांकों को मुंह मे रखकर मल-मलाकर थूक दूंगा। पेट मे न उतरने दूंगा। आप किसी प्रकार की चिन्ता न करें। चिंता तो मुझे अपनी है ही। इतना कहकर राजा ने आम की पांके मुँह मे रखली । फिर क्या था ? लोलप जिह्वा मधुर श्रात्र के स्वाद को कैसे छोड़ती ? वह जिहा का गलाम राजा अन्त मे आम को निगल ही गया। आम खाते ही वैद्य के