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पाव नाथ
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दान-पुण्य किया गया | अनेक फेदी कारागार से कर दिये गये । दीत्त-दरिद्रो को बल्ल आदि बितीर्ण किये गये। सूखा को भोजन दिया गया । यथोचित संस्कार होने के पश्चात् नामकरण संस्कार किया गया । पुत्र का नाम क्रणवेग' रक्सा गया ।
करणवेग का लालन-पालन बड़ी सावधानी से हुआ । उसके लिए पॉच वातमाताएँ नियत की गई । धाय-माताएँ उसके बलों की सार-संभलु रखती. उन्हें सान- सुधरा करतीं, खेलाती और डूब पिलातीं । बालविनोद और वातविकास की राव सामग्री प्रस्तुत थी । विनोद की ऐसी सुन्दर व्यवस्था की गई थी कि बालक विनोद के साथ-साथ उपोगी शिक्षाऍ भी ग्रहण करता चले एवं उसकी इन्द्रियो तथा मानस का विकास भी होता रहे। वाये इतनी सुशिक्षित और कुशल थीं कि वे खेलकूद मे ही बालक को संयम साहस, उद्योगशीलता और धर्मनिष्ठा का पाठ पढाती थीं । वे धाये श्राजकल की अनेक साताओं की सति इतनी निष्ठुर और निर्विवेक न थी कि अपने आराम के लिए बालको को हि फेन (अफीम ) खिलाकर व्यननी बना डालनीं । उन्हें ज्ञात था कि अफीम खिताने से बालक की चेतनाशक्ति मे जड़ता आजानी है, उनका शरीर अनेक रोगों का आगार वन जाता है और चलकर बालक मद्यपी या संगेडी गंजेडी वन जाता है । बड़ी उम्र होने पर जो नशेबाज हो जाते है उनसे ऐसे बहुतेरे निकलेगे जिन्हें बचपनसे मानाओं की बदौलत ही नशा करने की कुठे पड़ गई है | गसमार माताऍ इस प्रकार की सूर्खता से सना बचती हैं
2. कहीं नहीं 'किरवेग नाम का उल्लेख है। देखो हेमविजयगणि पार्श्वदाय चरित हि० सर्ग |
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