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प्रतिबोध राग हो गया। दोनो ने श्रावक धर्म को धारण कर लिया । दोनों पति-पत्नी श्रावक-धर्म की आराधना करके पांचवें स्वर्ग में उत्पन्न हुए । वहां की आयु समाप्त करके तुम वणिक कुल मे उत्पन्न हुए हो। तुम्हारा नाम वन्धुदत्त रखा गया है । हे वन्धुदत्त ! मीनमगांत के भव मे तुमने घोर हिंसा का आचरण किया था। अनेक हिरन-हरनियों की हत्या की। उन्हें विछोह की वेदना पहुँचाई । भांति-भांति के अत्याचार करके राजा के पद को तुमने कंलकित किया था। उसी के फल स्वरूप तुम्हें यह कष्ट भोगने पड़े हैं। ___ मुनिराज के मुखारविन्द से अपने पूर्व भवों का वृत्तान्त सुन कर अपने पूर्ववर्ती दुराचार के लिए उसे हार्दिक संताप हुआ उसने तीव्र पश्चात्ताप प्रगट किया । पश्चात्ताप प्रगट करते ही उसे जाति स्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया। उसे भगवान पार्श्वनाथ द्वारा बताया हुआ वृत्तान्त ज्यां-का-त्यों ज्ञात हो गया। इस कारण वन्धुदत्त के मन में भगवान् के प्रति प्रगाढ़तर श्रद्धा उत्पन्न हो गई। हर्प-विपादमय श्रद्धा-भाव के जागृत होने पर उसके नेत्रों से अश्रुधारा प्रवाहित होने लगी।
तत्पश्चात् चन्द्रसेन रंधे हुए कंठ से वोला- हे अशरणशरण । हे पतित-पावन ! मैं बड़ा पातकी हूँ। मेरे पापों का ओरछोर नहीं है। मैने एक नही, दो नहीं-सातों दुर्व्यसनों का सेवन किया है। हाय ! मैने वडे अत्याचार किये । वडा अन्याय किया। न जाने कितनों के प्राणों का घात किया और कितनों का धन लूट कर उन्हें दर-दर का भिखारी बना डाला । मैने मानवता को तिलांजली देकर दानवता को अपनाया । प्रभो ! मैं इतने पापों का गुरुत्तर भार लाद कर संसार सागर के पार कैसे पहुँ
चगा ?