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धर्म-देशना
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दीजिए इस कबूतर के नाप का अपने शरीर का मांस ।'
राजा मेघरथ के लिए या मॉग महँगी न थी। बाज ने जब कबूतर के बदले उनके शरीर का मॉस मॉग लिया, तब उन्हें कबूतर के बच जाने का निश्चय हो गया । इस प्रसन्नता के प्रवाह से अपनी शारीरिक विपत्ति का विपाद न जाने किस
ओर बह गया ? शरीर का थोड़ा-सा मांस देकर भी यदि अपने जीवन के महान् आदर्श की रक्षा की जाय तो सौदा क्या महंगा है ? आदर्श कर्तव्य तो जीग्न से भी अधिक महान है, अधिक गुस्तर है, अधिक मूल्यवान् है, अधिक रक्षणीय है और अधिक प्रिय है। और यहां तो सिर्फ कवतर के तोल के मांस से ही
आदर्श का रक्षण होता है। कितने आनन्द की बात है ? इस प्रकार सोच कर उन्होने प्रसन्नता पूर्वक अपना मास देना स्वीकार कर लिया। ___ तराज आ गई । एक ओर पलड़े मे थर-थर कांपता हुआ कबूतर बैठा और दूसरी ओर महाराज मेघरथ ने अपने हाथों अपने शरीर का मांस काट कर रखा। जितना मांस उन्होंने काटा वह कबूतर की वरावर न हुआ। फिर काट कर चढ़ाया वह भी पूरा न हुआ तो और ज्यादा काटा ! देव माया के कारण जब मांस वाला पलड़ा ऊँचा ही रहा, तो मेघरथ महाराज स्वयं पलड़े से बैठ गये । उन्होने कवतर के परित्राण के लिए अपने शरीर का उत्सर्ग कर दिया। ___महाराज मेघरथ की परीक्षा हो चुकी । इन्द्र ने देव सभा मे जितनी प्रशंसा उनकी की थी। वे उससे भी अधिक प्रशंसा के पात्र निकले । देवो ने अपना अमली स्वल्प प्रकट किया। कष्ट देने के लिए क्षमा याचना की और कहने लगे-'महाराज,