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उसका जाप करने लगा ।
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कुछ दिन व्यतीत हो जाने के बाद दत्त ब्राह्मण फिर उन्हीं मुनिराज की सेवा में उपस्थित हुआ । दन्त जिस समय मुनिराज के पास पहुंचा उस समय वहां एक पुष्कली नाम के श्रावक वैठे थे | श्रावक ने दत्त ब्राह्मण की ओर देखकर मुनि से पूछा'आर्य | यह ब्राह्मरण मृत्यु के अनन्तर किस योनि मे जन्म लेगा ?
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मुनिराज ने कहा - श्रमणोपासक । इसने पहले ही आयु का वध कर लिया है। उस बंध के अनुसार यह मृत्यु के पश्चात् राजपुर मे मुर्गे के रूप में जन्म ग्रहण करेगा | आयु बंध होने पर कोई कितना ही प्रयत्न करे, कैसी भी कठोर साधना के पथ को ग्रहण करे, पर वह बंध छूट नही सकता । अतएव विवेकशीलं पुरुषों को चाहिए कि वे सदा ही अपने अध्यवसायों को शुद्ध रक्खे । सम्पूर्ण आयु के दो भाग समाप्त होने पर जब तीसरा भाग अवशिष्ट रहता है तब आयु का नवीन बंध होता है । कारणों की अपूर्णता होने से यदि उस समय आयु का बंध न हो तो अवशिष्ट आयु के दो भाग समाप्त होने पर तीसरा भाग शेष रहने पर आयु का बंध होता है । यदि उस समय भी कारणों की विकलता से बंधन हुआ तो फिर उसी प्रकार तीसरे भाग मे आयु बंध होता है । कभी-कभी मृत्युकाल मे बंध होता । इससे यह जान पड़ता है कि बंध के समय को छद्मस्थ जीव जान नहीं सकता । संभव है थोड़ी देर के लिए परिणामों में मलिनता उत्पन्न हो और उसी समय नवीन आयु बंध जाय । अतः क्षणभर भी मनुष्य को असाव धान न रहकर निरन्तर प्रशस्त परिणामो मे वर्तना चाहिए । कर्मों का एकच्छत्र साम्राज्य है । सारा संसार इनके वशीभूत