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उपसर्गजयो कामदेव
पूरी नही होगी । मैं यह अच्छी तरह जानता हूँ कि तू अपने व्रतो से चलित नही हुआ है और न चलित होना चाहता है । किन्तु यदि अब मेरे कहने मात्र से तू अपने व्रतो को भंग नही करेगा तो इसी तीक्ष्ण तलवार से तेरे शरीर के टुकडे टुकडे कर डालूंगा ।"
उस देव-पिशाच के ये भयंकर शब्द कामदेव के कानो में पडे, किन्तु वह यथावत् कायोत्सर्ग मे लीन रहा, किचित्मात भय भी उसे स्पर्श न कर मका । उसे इस प्रकार निर्भय, अनुद्विग्न, अचल देखकर पिशाच क्रोध भरी चिनगारियाँ उगलने लगा
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"दुष्ट | तु इस प्रकार निर्भय रखकर अपने प्राणो की रक्षा नही कर सकेगा । अपने व्रतो को शीघ्र खण्डित कर मेरी शरण मे आ जा अन्यथा बुरी तरह मारा जायगा ।"
इस प्रकार अनेक बार उसने कामदेव को आह्वान करने का उपक्रम किया किन्तु जब वह सफल न हुआ तो एकाएक क्रुद्ध होकर उस तीक्ष्ण तलवार ने कामदेव के टुकडे-टुकडे करने लगा ।
कोमल काया पर उस प्रकार तीक्ष्ण आघात होने पर किसे पीडा न होगी ?
कामदेव को भी तीव्र व असह्य वेदना हुई । तथापि वह अपने निश्चय में अडिग रहा । तनिक सी भी व्यग्रता उसके हृदय मे नही आई । पिशाच ने उसे भली-भाँति देखा, समझा और अपनी क्रूर भावनाओ से उसे डिगाने मे अपनी सारी शक्ति लगा दी । किन्तु उसका सारा परिश्रम व्यर्थ गया । तब वह सोचने लगा - कामदेव निर्भय है । ध्यान मे लीन है । निर्ग्रन्थ वचन से अविचलित व अविक्षिप्त है । उसके ध्यान को भग करने मे मेरी सारी शक्ति व्यर्थ हुई ।
अब वह पिशाच शान्त होकर विचार करने लगा - मैं कैसा अभिमानी था. इसे विचलित करने के लिए कितने क्रूर कर्म किए किन्तु यह अविचलित ही रहा । इसने मेरे सारे प्रयामो पर पानी फेर दिया, मेरा अभिमान चूर-चूर कर दिया ।
इन विचार से उनका हृदय ग्लानि मे भर गया । पौपधशाला से बाहर आकर उनने अपना पिशाच का रूप त्याग दिया ।